________________
जीवत आयुष्यप्राणवर्णनम्,
(८९)
प प्रमाणे अपवर्तनीय अने अनपवर्त्तनीय भेद काळआयुष्यनाज है, परन्तु द्रव्यआयुष्य ( आयुष्य पुद्गलो ) अपवर्तनीय अनपवर्त्तनीय नथी. कारण आयुष्यनां जेटली पुद्गलो ( आयुष्यनाजेटला परमाणु ) जीवे ग्रहण करेला छे ते सर्व ( परमाणुओ ) क्षय थयाबाद जीव मरण पामी शके, परन्तु आयुष्यनो एक पण परमाणु जीवने क्षय करवो बाकी रह्यो होय भने जीव मरण पाएँ एम कदी पण बनी शकेज नहिं, अने काळआयुष्यमां तो सेंकडो वर्षांनी स्थिति उपार्जन करी होय छतां अन्तर्मुहूर्तमां पण मरण पामी जाय एम बनी शकेले. ए हेतुथी द्रव्यआयुष्य संपूर्णथये अने काळआयुष्य अपूर्ण रहो छते पण जीवनुं मरण भइ शकेले.
शंका - आयुष्य ए पुल के अने स्थिति ते पण आयुष्यनां पुद्गलनीज छे, तो सर्व पुद्गलमो क्षय थाय अने सर्व स्थितिनो क्षय नथाय ते कंम बनी शके ?
उत्तर - हे जिज्ञासु! ए शंका सत्य के, परन्तु जेम कोढीआमां पूरेल तेल दौपकनी मोटी ज्योति करवाथी शीघ्र बळी जायचे त्यारे सर्व तेलनो क्षय थतां पण "आ दीपक अल्पकाळ बळयो" अथवा " दीपक अल्पकाळni बुझाइ गयो” एवो व्यपदेश थाय छे, तेम आयुष्यनां सर्वपुद्गल क्षय थया छतां पण आयुष्यनो काळ अपूर्ण रहे - वाथी वास्तविक रीते ते अपूर्ण काळे मरण पाम्यो एवो व्यपदेश थाय छे, कारण जीवनुं जीववुं आयुष्य पुगलोना आलंबनथीज छे. तथा १०० हाथनी लांबी करेली दोरीने एक छेडेथी सळगावी होयतो ते घणे काळे बळी रहे, परन्तु ते दोरीनुं गुंछळु ( गुंडाळु ) करवामां आवेतो शीघ्र बळी जाय छे, तेम आयुष्यना पुलो प्रथम समये चीजे समये चीजे समये जे रौते क्षय पामतां जाय छे तेज अनुक्रमे जो आयु पुद्गलोनो क्षय चालु रहे तो १० वर्षे सर्व