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॥ जीव
पञ्चेन्द्रियमाणवर्णनम् ॥ (६१)
तथा जीव जे इन्द्रियना उपयोगमां ( विषय ग्रहणमां ) व तो होय ते इन्द्रिय 'उपयोग भावेन्द्रिय' कहेवाय. पूर्वे कट्टेल लब्धि तो एक जीवने पांचे इन्द्रियोनी एकीसमये (समकाळे ) होयछे, परन्तु ते विषयावबोध करवानो व्यापार तो एक समये एकज इन्द्रियद्वारा होवाथी एक जीवने समकाळे लब्धिथी पांचे इन्द्रियो संभवे छे अने उपयोगथी एक जीवने एकज इन्द्रिय कहेवाय अथवा एकेन्द्रियादि सर्व जीवोने लब्धि तो (इन्द्रियावरणक्षयोपशमतो ) पांचे इन्द्रियोनी होय छे, परन्तु द्रव्येन्द्रिय कोइने एक तो कोने से ए प्रमाणे हीनाधिक छे, अने तेमां पण उपयोगतो एकज इन्द्रियनो होइ शके छे. ए हेतुथी सर्वे जीवो लब्धि इन्द्रियवडे पंचेन्द्रिय छे, द्रव्येन्द्रिय वडे एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय ने पंचेन्द्रिय छे, अने उपयोगेन्द्रियवडे सर्व जीवो एकेन्द्रिय छे एम पण कहीशकाय. ॥ इति इन्द्रियभेदार्थः ॥
|| इन्द्रियोनुं स्थान. ॥
स्पर्शेन्द्रियनुं स्थान सर्व शरीर छे. अर्थात् सर्वदेहमां उपरना भागमां अने अंदरना भागमां स्पर्शेन्द्रियना ( अभ्यन्तर निर्वृत्ति स्पर्शेन्द्रियना ) अणुओ (पुद्गल प्रदेशयुक्त आत्म प्रदेशो ) व्याप्त थयेला छे, अथवा शरीरनी त्वचाना ( चामडीना ) बहारना भागमां अने अंदर पण अभ्यन्तर स्पर्शेन्द्रियना परमाणुओं व्याप्त थयेला होये छे. तेथीज पीथेला शीतल पाणीनो अंदरना भागमां पण अनुभव थाय छे, वळी ए इन्द्रिय अबरखना पड सरखी छे, त्यां त्वचानी बहार अने अंदरनुं पड जू नथी पण एकज छे. १ तथा मुखनी अंदर जे जिह्वा (बाह्य निर्वृचि रूप) देखाय छे ते जीह्वामां उपर अने नीचेना भागमां रसनेन्द्रियना परमाणुओं ( अभ्यन्तर