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टीकार्थ-मनपणाने योग्य एटले मनोवर्गणा प्रायोग्य अर्थात् मनपणे परिणमवामां समर्थ जे द्रव्यो तेने ग्रहण अने विसर्जन करवा संबंधि सामर्थ्यनी रचनारूप क्रियानी परिसमाप्ति ते मनःपयाप्ति, एम केटलाएक आचार्यो मनःपर्याप्ति जुदी कहे छे, अर्थात् इन्द्रियपर्याप्ति अने नोइन्द्रियपर्याप्तिना ग्रहणमा ( मनःपर्यालिने ) भेगी गणता नथी, इन्द्रिय पर्याप्तिथी भिन्न गणे छे, परन्तु मनःपर्याप्तिने केटलाएक आचार्य माने छे, अने केटलाएक नथी मानता एम नहिं. ____ "भाष्यार्थ-ए पर्याप्तिओ समकाळे प्रारंभाय छे छतां पण समाप्त अनुक्रमे थाय छे तेनुं कारण ए छे के ए पर्याप्तिओ उत्तरोत्तर ( अनुक्रमे ) सूक्ष्म सूक्ष्मतर छे, तेनां दृष्टांतो सूत्र कांतवा अने काष्ट घडवाना अनुक्रमे ( आ प्रमाणे ) छे.
टीकार्थ-ए छए पर्याप्तिओ समकाळे आरंभाइ छती अनुक्रमे समाप्त थाय छे ते दर्शावे छे के पर्याप्तिओ विषमकाळे समाप्त थाय छे तेनु शुं कारण ? ( तेनो उत्तर ) कहे छे के पयाप्तिओ अनुक्रमे सूक्ष्म सूक्ष्मतर छे. अर्थात् आहारपर्याप्तिथी शरीरपर्याप्ति अति सूक्ष्म छे, एटले अति सूक्ष्म द्रव्यना समूहवडे रचायली छे, तेथी पण इन्द्रियपर्याप्ति अतिशय सूक्ष्म, तेथी पण उच्छवास पर्याप्ति, तेथी पण वचनपर्याप्ति, अने तेथी पण मनः पर्याप्ति अति सूक्ष्म छे. माटे तेनुं अनुक्रमे सूक्ष्मपणुं दृष्टान्तथी जणावे छे के सूत्र कांतवा अने काष्ट घडवाना दृष्टांते (ए पर्याप्तिओ सूक्ष्म सूक्ष्मतर छे ) अर्थात् जाडं सूत्र कांतनारी अने वारीक सूत्र कातनारी सूत्र कांतवानो समकाळे प्रारंभ करे तोपण जाडं सूत्र कांतनारो कोकडु व्हेलं पूरुं करे, अने बीजी घणे काळे पूरु करे. तथा काष्ट घडवामां पण एज क्रम जाणवो के स्तंभ