________________
(६४) ( ११ ) यह कार्य हाथ की चालाकी से होता है, इसलिये 'हस्तलस्व', (१२) यह पाप-कर्म कराता है, इसलिये 'पापकर्मकरण', (१३ ) अस्तेय का नाशंक है, इसलिये 'स्तेय', ( १४ ) दूसरे का द्रव्य नाश किया जाता है, इससे 'हरणविषणास', ( १५ ) दूसरे का धन लिया जाता है, इसलिये 'प्रादान', ( १६ ) दूसरे के धन का लोप किया जाने से 'धन लोपन', ( १७ ) अविश्वास का कारण होने से 'अप्रत्यय', ( १८ ) दूसरे को पीड़ा देने से 'अवपीड़', (१६) दूसरे के धन को छीन लेने से 'पाप', (२०) 'क्षप', (२१) 'विक्षेप', ( २२ ) छल-कपट युक्त होने से, 'कूटता, ( २३ ) कुल का कलंक बनाने से ' कुलमसि', (२४) दूसरे के धन की लालसा होने से, 'कांक्षा', ( २५) इसे छिपाने के लिये दूसरे की प्रार्थना करनी पड़ती है और दीन वचन बोलने पड़ते हैं, इससे 'लालपन-प्रार्थना', ( २६ ) दुःख का कारण होने से 'व्यसन', ( २७ ) दूसरे के धन में लोलुपता होने से ' इच्छामूर्छा', तथा (२८) तृष्णा-गृद्धि', (२६) माया सहित होने से ' निकृति ' कर्म, और (३०) किसी के सामने दूसरे का धन न लेने से 'अप्रत्यक्ष ' नाम है । मित्रद्रोह आदि पापों से भरे हुए अदत्तादान के ऐसे ही और अनेक नाम हो सकते हैं ।