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के आश्रित हैं । सोना पास हो तो संसार की सभी वस्तु चीजें प्राप्त हो सकती हैं तथा सोना ऐसी धातु है कि चाहे हजारों वर्ष तक पृथ्वी में दबी रहे, तब भी न सड़ती है, न गलती है, न खराब होती है । यही कारण है कि लोगों को सोने से बहुत ममत्व होता है तथा सोने का त्याग कठिन माना जाता है । जो सोने का त्याग कर देता है, उसने जैसे सोने द्वारा प्राप्त होने वाले संसार के सब पदार्थों का त्याग कर दिया है और संसार के किसी भी पदार्थ से ममत्व करता है, वह सोने से कदापि ममत्व नहीं त्याग सकता । सांसारिक लोग सोने में विशेषता देख कर ही उससे ममत्व करते हैं और इसी से सोना, मोहक माना जाता है । सोने के पश्चान् स्त्री मोहिनी मानी जाती है । कोई-कोई ऐसे भी होते हैं कि जो सोने से तो ममत्व त्याग देते हैं लेकिन उनसे स्त्री का ममत्व त्यागना बहत. कठिन होता है । कदाचित् कोई सोने और स्त्री से ममत्व त्याग भी दे, इनको छोड़ भी दे, लेकिन तुलसीदास जी के कथनानुसार मान बड़ाई तथा ईर्ष्या का छोड़ना बहुत कठिन होता है और जब तक इनका सद्भाव है, तब तक " परिग्रह छूटा है" ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि एक तो ममत्व का नाम ही परिग्रह है, दूसरे जहां मान-बड़ाई की चाह और ईर्ष्या है, वहां सभी पाप सम्भव हैं ।
अपरिग्रह-व्रत स्वीकार करने वाले कई साधु मानबड़ाई की चाह में पड़ जाते हैं और इस कारण दूसरे से ईर्ष्या करने लग जाते हैं । मान-बड़ाई की चाह से वे लोग ऐसे-ऐसे कार्य कर डालते हैं, जिनका वर्णन करना कठिन एवं आपत्तिजनक है । इसलिए इतना ही कहा जाता है कि