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( ३०२) इच्छापूर्वक न छोड़ने पर संसार के पदार्थ छूटेंगे तो अवश्य ही, परन्तु उस दशा में हृदय को अत्यन्त खेद होगा तथा लोगों में निन्दा भी होगी। .. सांसारिक पदार्थों को स्वयं त्यागने से एक लाभ और भी है । भावी सन्तति भी सांसारिक पदार्थों का विश्वास न करेगी किन्तु उन्हें त्याज्य मानेगी। इस प्रकार सांसारिक पदार्थों को स्वयं ही त्यागने से भावी सन्तान को भी लाभ होगा।
सांसारिक पदार्थों से आत्मा का कोई स्थायी सम्बन्ध नहीं है और ये छूटने वाले हैं, वह जान कर ही धन्ना, शालिभद्र और भृगू पुरोहित आदि ने अपनी विशाल सम्पत्ति त्याग दी थी । पूर्व के अनेक मुनि महात्माओं एवं महापुरुषों ने संसार के किसी पदार्थ से इसी कारण ममत्व नहीं किया
और बड़ी सम्पत्ति, बड़ा परिवार तथा विशाल राज्य भी तुणवत् त्याग दिया । वे जानते थे कि हम ध्र व (आत्मा) की उपेक्षा करके अध्र व (पदार्थ) लेने जायेंगे, तो जो अध्र व हैं वे तो छूटेंगे ही, साथ ही ध्रुव आत्मा की भी हानि होगी। वे इस बात को समझ चुके थे कि इन्द्रियों को सुखदायक जान पड़ने वाले सांसारिक पदार्थ, इन्द्रियों की अपेक्षा तुच्छ हैं । इन्द्रियों में जो शक्ति है, वह सांसारिक पदार्थों से बहुत बढ़कर है । इसलिए इन्द्रियों को सांसारिक पदार्थ के भोगोपभोग में डाल कर उन की शक्ति का दुरुपयोग करना, उसे नष्ट करना अनुचित है और इन्द्रियों से बढ़ कर मन है । इसलिए इन्द्रियों के पीछे मन की शक्ति नष्ट करना भी मूर्खता है । जिन पदार्थों में इन्द्रियां सुख मानती हैं, उन पदार्थों को चाहना और मन को इन्द्रियानुगामी बनाना