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अभिलाषा है अतः इस अभिलाषा के पूरी हो जाने पर दूविषय भोग का त्याग कर देना ही उचित है । इसी प्रकार बढ़ती हुई सन्तान को रोकने के लिए भी मैथुन का ही त्याग करना चाहिये, कृत्रिम उपायों का अवलम्बन लेना ठीक नहीं । सन्तति-निरोध के कृत्रिम उपाय, अनीति और पापाचार को बढ़ाने वाले तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानि
देशविरति-ब्रह मचर्यव्रत की रक्षा के लिए स्त्री को पुरुष की और पुरुप को स्त्री की सहायता करना उचित एवं आवश्यक है । यदि किसी समय पुरुष में व्रत या उसकी मर्यादा भंग करने की बुरी इच्छा हो तो पत्नी का कर्तव्य है कि वह प्रत्येक सम्भव उपाय से अपने पति को ऐसा करने से बचावे । इसी प्रकार यदि किसी समय स्त्री में ऐसी कुभावना हो तो पति का भी यही कर्तव्य है। इस प्रकार एक दूसरे की सहायता एवं एक दूसरे को सावधान करते रहने से पति-पत्नी दोनों का व्रत निर्मल पलेगा और वे कभी पूर्ण ब्रहमचर्य के आदर्श तक पहुंच कर अपना कल्याण कर सकेंगे।