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________________ विवाह। तृषा शुष्यत्यास्यं पिबति सलिलं स्वादु सुरभि, भुधार्तः सन् शालीन् कवलयति शाकादि वलितान् । प्रदीप्ते कामाग्नौ सुदृढतरमाश्लिष्यति वधूम, प्रतीकारो ब्याधेः सुखमिति विपर्यस्यति जनः ॥ -वैराग्यशतक 'जब मनुष्य का कण्ठ प्यास से सूखने लगता है तब वह शीतल, सुगन्धित और निर्मल जल पीकर तृषा के दुःख से मुक्त होता है । जब भूख सताती है तब शाकादि के साथ भोजन करके क्षधा का कष्ट मिटाता है । जब कामाग्नि प्रचण्ड होती है, तब सुन्दर-स्त्री को हृदय से लगाता है । इस प्रकार जल, भोजन और स्त्री एक-एक रोग की दवा है लेकिन लोगों ने उल्टा ही मान रखा है अर्थात् लोग इन दवाओं में भी सुख मानते हैं।' १-मनुष्य-जन्म उत्तम क्यों है ? मनुष्य-शरीर सब शरीरों से उत्तम क्यों माना जाता है, इस विषय में कहा है :
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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