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________________ ( १०६) न्यूनया ददतोऽधिकया गृहृतोऽतिचार । अर्थात्-तराजू से तोल कर या नाप से नाप कर कम देना या लेना ' कूडतुल्ल कूडमाणे' या ' कूटतुला कूटमान' अतिचार है । नियत बाँट-पैमाने से कम ज्यादा वजन या नाप के बाँट पैमाने रख कर उनसे तोलना-नापना, या पूरे बांट पैमाने रख कर भी डण्डी मारना, लेन-देन वाले को धोखा देकर कम-ज्यादा नापना-तौलना, चोरी है । भूल या असावधानी से कम-ज्यादा नापना-तौलना अतिचार है । इसलिये श्रावक को इस विषय में सावधानी रखना उचित है, जिसमें प्रतिचार न हो। सुनने में आता है कि कई लोग दो तरह के बांटपैमाने रखते हैं । एक तो नियत बांट-पैमाने से कम होते हैं और दूसरे अधिक । जब किसी को वस्तु देनी होती है, तब तो उन बांट-पैमाने से तौलते-नापते हैं जो कम होते हैं और किसी से लेनी होती है, तब उन बाँट पैमाने से तोल-नाप कर लेते हैं, जो अधिक होते हैं। कई लोग पूरे बांट-पैमाने रख कर भी तौलने नापने में ऐसी चालाकी से काम लेते हैं कि दी जाने वाली वस्तु तो कम जावे और ली जाने वाली वस्तु अधिक आवे । श्रावकों को इस प्रतिचार से बचते रहने की सावधानी रखनी चाहिये । पांचवां अतिचार तप्पडिरूवगववहारे या तत्प्रतिरूपव्यवहार है । इसकी व्याख्या टीकाकार ने इस प्रकार की है- तेन अधिकृतेन प्रतिरूपकं सदृशं तत्प्रतिरूपकं
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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