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________________ ( १०७ ) विरुराज्यातिक्रमः । अर्थात् - जो राजा लोग परस्पर विरोध रखते हैं, यानी लड़ते हैं उनके राज्य को एक दूसरे राज्य वाले विरुद्ध नृपराज्य कहते हैं । ऐसे विरुद्ध राज्य का उल्लंघन करना यानी लड़ाई के समय विरुद्ध राज्य में आना-जाना 'विरुद्धरज्जातकम्मे ' या ' विरुद्धराज्यातिक्रम' है । ऐसा करने में राजा और धर्म दोनों की मर्यादा भंग होती है । लड़ाई के समय सुव्यवस्था के लिये राज्य में आवागमन नहीं किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से एक राज्य में दूसरे राज्य का भेद चले जाने का भय रहता है । इस लिये श्रावक को इस अतिचार से बचने की सावधानी रखनी चाहिए कई लोग इस प्रतिचार का अर्थ राजा के विरुद्ध काम करना लगाते हैं, लेकिन इस अतिचार का यह अर्थ नहीं हो सकता । यदि यह अर्थ लगाया जावे तो बहुत उलट पलट हो जावे और श्रावक को अपने अन्य व्रत पालन करने में बड़ी सुविधा हो । उदाहरणार्थ - राजा कभी यह श्राज्ञा दे कि आजकल आबकारी विभाग की आय कम हो गई है अतः सब लोग शराब पिया करें तो ऐसी दशा में "क्या श्रावक शराब पीने लगेंगे ? यदि नहीं, तो फिर ऐसी आज्ञा देने वाले राजा का विरोध करने से अतिचार कैसे हो सकता है ? बल्कि ऐसे हुक्म या ऐसे राजा का विरोध न करना पाप का भागी होना है और इसका फल प्रजा को उसी प्रकार भोगना पड़ता है, जिस प्रकार राजा श्रेणिक उस प्रज्ञा का, जिसके अनुसार साहूकारों के छः लड़के
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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