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परिशिष्ट
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आत्मा का दर्शन
ईहा
: अमुक होना चाहिए, ऐसा प्रत्यय। उवसामणा मोहकर्म को उदय, उदीरणा आदि उक्कुडुय : उत्कटुक आसन।
के अयोग्य करना। उग्गह : स्थान।
उवहाणवं श्रुत आराधना के लिए विशिष्ट उग्गह : इन्द्रिय और पदार्थ का संयोग होने
तपस्या को वहन करनेवाला। पर हाने वाला सामन्य अवबोध। उवासगपडिमा श्रमणोपासक की साधना का उज्जुमइ : सामान्य रूप से मानसिक पुद्गलों
विशिष्ट प्रयोग। को ग्रहण करनेवाली मति।
: कर्मों की स्थिति और अनुभाग में वृद्धि। उज्जुसुत : वर्तमान पर्याय को स्वीकार करने उस्सप्पिणी : काल का वह विभाग, जिसमें वाला अभिप्राय। .
पदार्थों की शक्ति में क्रमशः वृद्धि उज्झियधम्मिय : फेंकने योग्य।
होती है। उड्ढ :: ऊर्ध्वलोक
ऊणोयरिया/ भोजन, वस्त्र, कषाय आदि की उत्तरगुण : महाव्रतों को पुष्ट करनेवाले नियम।। ओमोरिया अल्पता। उत्तरवेउब्विय : नए रूप-निर्माण की शक्ति। एकल्लविहारपडिमाः साधना का विशेष प्रयोग-एकाकी उदीरणा : निश्चित समय से पूर्व कर्मों का
विहार। उदय में आना
एवंभूत (णय) : क्रिया-परिणति के अनुरूप ही शब्द उदुबद्रिय : चातुर्मास काल से अतिरिक्त
प्रयोग को स्वीकार करनेवाला समय।
अभिप्राय। उद्देसणकाल : एक वाचना का समय। एवंभूय (वेदणा : जिस प्रकार कर्म-बंध हो, उसी उप्पन्ननाणसणधर : केवलज्ञान एवं केवलदर्शन के धारक।
प्रकार कर्म का वेदन करना। उवक्कम • कर्म स्कंधों को विविध रूप में ओरालवग्गणा : औदारिक शरीर के रूप में प्रयुक्त परिणत करने में हेतुभूत वीर्य।
होनेवाले सजातीय पुद्गल द्रव्य। • कर्म स्कंधों की विभिन्न
ओसप्पिणि : काल का वह विभाग, जिसमें परिणतियों का प्रारंभ।
पदार्थों की गुणवत्ता का क्रमशः उवक्कमिया . : अपने प्रयत्न से उत्पन्न वेदना।
हास होता है। उवभोग-परिभोग (चय) : भोजन, व्यवसाय आदि का अतींदियनाण : रूपी द्रव्यों एवं अरूपी द्रव्यों का परिसीमन।
. साक्षात्कार करने वाला ज्ञान। उववाय. देव और नारक का जन्म।
कंखामोहणिज्ज : मिथ्यात्व मोहनीय। उववूह : सद्गुणों को बढ़ावा देना।
कम्म : जीव की शुभ, अशुभ प्रवृत्ति से उवसंतमोह : मोहकर्म का सर्वथा उपशम
आकृष्ट सुख, दुःख एवं आवरण करनेवाले जीव की अवस्था।
. के हेतुभूत पुद्गल-स्कंध। उपसंपदा (सामायारी): ज्ञान आदि की प्राप्ति के लिए कम्मगसरीर : कर्मसमूह से निष्पन्न शरीर।
___ गुरु के पास विनम्र भाव भाव कम्मादाण : कर्म बंधन के हेतु। से रहना।
कम्माययण : कर्म आने के स्थान। • ज्ञानाराधना आदि के लिए करण : दुसरेगण में जाना।
होने वाली विशेष प्रकार की उवसग्ग. साधना में देव, मनुष्य वतियंच
व्यवस्था। कृत बाधा।
कार्तित : मूत्र । उपसमय मोहकर्म का उपशमन करने वाला। कायकिलेस : कायोत्सर्ग आदि आसन करना।