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________________ आत्मा का दर्शन ७३६. भई मिच्छादंसण समूहमइयस्स अमयसारस्स । जिणवयणस्स भगवओ, ७३८. दव्वं विविहसहावं, तस्स निमित्तं कीरह, निक्षेप सूत्र ७३७. जुत्ती सुजुत्तमम्गे, जं चउभेएण होइ खलु ठेवणं । कज्जे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समए ॥ ७५० संविग्गसुहाहिगम्मस्स ॥ जेण सहावेण होइ तं ज्ञेयं । एक्कं पि य दव्व चउभेयं ॥ ७३९. णामट्ठवणा दव्वं, भावं तह जाण होइ णिक्खेवं । दव्वे सण्णा णामं, दुविहं पि य तं पि विक्खायं ॥ ७४०. सायार इयर ठवणा, कित्तम इरा दुबिंबजा पढमा । इरा इयरा भणिया, ठवणा अरिहो य णायव्वो ॥ ७४१-७४२. दव्यं खु होइ दुविहं, णो आगमं पि तिविहं, णाणिसरीरं तिविहं, आगमणो आगमेण जह भणियं । अरहंत सत्थ- जाणो, अणतो दव्य- अरिहंतो ॥ देहं णाणिस्स भाविकम्मं च। चुद चत्तं चाविदं चेति ॥ खण्ड - ५ स्वधर्मी हो या पर धर्मी, किसी के भी साथ वचन- विवाद करना उचित नहीं । मिथ्यादर्शनों के समूहरूप, अमृतरस प्रदायी और अनायास ही मुमुक्षुओं की समझ में आनेवाले वन्दनीय जिनवचन का कल्याण हो। निक्षेप सूत्र प्रमाण और नय के द्वारा निर्णीत मार्ग में पदार्थ की नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव में स्थापना करने को निक्षेप कहा जाता है। L द्रव्य विविध स्वभाववाला है। उनमें से जिस स्वभाव के द्वारा वह ध्येय या ज्ञेय ( ध्यान या ज्ञान का विषय ) होता है उस स्वभाव के निमित्त एक ही द्रव्य के ये चार भेद किये जाते हैं। निक्षेप के चार प्रकार है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । पदार्थ के संज्ञकरण को नाम निक्षेप कहा जाता है। उसके दो प्रकार हैं- यादृच्छिक और यावत्कथिक । यह अप्रस्तुत निराकरण और प्रस्तुत बोध के लिए किया जाता है। जहां एक वस्तु का किसी अन्य वस्तु में आरोप किया जाता है वहां स्थापना निक्षेप होता है। यह दो प्रकार का है - साकार और निराकार जैसे कृत्रिम या अकृत्रिम अर्हत् की प्रतिमा साकार स्थापना है। किसी अन्य पदार्थ में अर्हत् की स्थापना करना निराकार स्थापना है। जब वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लंघन कर उसका भूतकालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, तब उसे द्रव्यनिक्षेप कहते हैं उसके दो भेद हैं-आगम और नोआगम अर्हन्तकथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगाता, उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप से अर्हन्त है। नो आगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद हैं-ज्ञायक शरीर, भावी और कर्म। जहां वस्तु के ज्ञाता के शरीर को उस वस्तुरूप
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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