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________________ समणसुतं प्रमाण सूत्र पंचविध ज्ञान ६७४. संसयविमोह - विब्भम विवज्जियं अप्प पर सरुवस्स । सायार-मणेय भेयं 'तु ॥ गणं सम्मं णाणं, ७४१ ६७५. तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिनिबोहियं । ओहीनाणं तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ६७६. पंचेव होंति णाणा, . खयउवसमिया चउरो, मदि-सुद-ओही मणं च केवलयं । केवलणाणं हवे खइयं ॥ शे. १७. ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा' य गवेसणा । सण्णा सती मती पण्णा, सव्वं आभिणिबोधियं ॥ ६७८. अत्थाओ अत्यंतर - मुवलंभे तं भांति सुयणाणं । आभिणिबोहिय-पुव्वं, णियमेण य सहयं मूलं ॥ ६७९. इंदिय-मणोनिमित्तं, जे विण्णाणं सुयाणुसारेणं । निययतत्थुत्ति - समत्थं, तं भावसुयं मई सेसं ॥ ६८०. मइपुव्वं सुयमुत्तं, न मई सुयपुव्विया विसेसोऽयं । पुव्वं पूरणपालण-भावाओ जं मई तस्स ॥ १. धुआं देखकर होनेवाला अग्नि का ज्ञान लिंगज है और वाचक शब्द सुन या पढ़कर होनेवाला ज्ञान शब्दज है। आगम में शब्दज श्रुतज्ञान का प्राधान्य है । प्रमाण सूत्र अ. ४ : स्याद्वाद पंचविध ज्ञान संशय, विमोह (विपर्यय) और विभ्रम (अनध्यवसाय) इन तीन मिथ्याज्ञानों से रहित स्व और पर के स्वरूप का ग्रहण करना सम्यग्ज्ञान है। यह वस्तुस्वरूप का यथार्थ निश्चय कराता है, अतएव इसे साकार अर्थात् सविकल्पक (निश्चयात्मक) कहा गया है। इसके अनेक भेद हैं। ज्ञान पांच है- आभिनिबोधिक - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान । इस प्रकार मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल के रूप में ज्ञान केवल पांच ही हैं। इनमें से प्रथम चार ज्ञान क्षायोपशमिक हैं, और केवलज्ञान क्षायिक है। ईहा, अपोह, मीमांसा, मार्गणा, गवेषणा, संज्ञा, शक्ति, मति और प्रज्ञा- ये सब आभिनिबोधिक है। ( अनुमान या लिंगज्ञान की भांति ) अर्थ (शब्द) को जानकर उस से अर्थान्तर ( वाच्यार्थ ) को ग्रहण करना श्रुतज्ञान कहलाता है। यह ज्ञान नियमतः आभिनिबोधिक ज्ञानपूर्वक होता है। इसके दो भेद हैं-लिंगजन्य और शब्दजन्य । ' इन्द्रिय और मन के निमित्त से श्रुतानुसारी होनेवाला ज्ञान श्रुतज्ञान कहलाता है। वह अपने विषयभूत अर्थ को दूसरे से कहने में समर्थ होता है। शेष इन्द्रिय और मन के निमित्त से होनेवाला अश्रुतानुसारी अवग्रहादि ज्ञान मतिज्ञान है | आगम में कहा गया है कि श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक होता है । मतिज्ञान श्रुतज्ञानपूर्वक नहीं होता। यही दोनों में २. इस मतिज्ञान से स्वयं तो जाना जा सकता है, किन्तु दूसरे को नहीं समझाया जा सकता।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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