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स्याद्वाद
अनेकांत सूत्र
अनेकांत सूत्र
६६०. जेण विणा लोगस्स वि,
ववहारो सव्वहा ण निव्वहइ। तस्स भुवणेक्कगुरुशो,
णमो अणेगंतवायस्स॥
जिसके बिना लोक का व्यवहार बिलकुल नहीं चल सकता, विश्व के उस एकमात्र गुरु अनेकांतवाद को प्रणाम करता हूं।
६६१. गुणाण-मासओ दव्वं, एग-दव्वस्सिया गुणा।
लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे॥
जो गुणों का आश्रय होता है, वह द्रव्य है। जो एक (केवल) द्रव्य के आश्रित रहते हैं, वे गुण होते हैं। द्रव्य और गुण-दोनों के आश्रित रहना पर्याय का लक्षण है।
६६२. दव्वं पम्जव-विउयं,
दव्वविउत्ता य पज्जवा णत्थि। उप्पाय-ट्ठिइ-भंगा,
हंदि दवियलक्खणं एयं॥
पर्याय के बिना द्रव्य नहीं और द्रव्य के बिना पर्याय नहीं। उत्पाद, स्थिति (ध्रुवता) और व्यय (नाश) द्रव्य का लक्षण है। अर्थात् द्रव्य उसे कहते हैं जिसमें प्रति समय उत्पाद आदि तीनों घटित होते रहते हैं।
६६३. ण भवो भंगविहीणो,
उत्पाद व्यय के बिना नहीं होता और व्यय उत्पाद के .
.भंगो वा णत्थि संभवविहीणो। बिना नहीं होता। इसी प्रकार उत्पाद और व्यय दोनों उप्पादो वि य भंगो,
त्रिकाल-स्थायी ध्रौव्य अर्थ (आधार) के बिना नहीं होते। -
ण विणा धोव्वेण अत्थेण॥
६६४. उप्पाद-दिदि-भंगा,
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य (उत्पत्ति, विनाश और विज्जते पज्जएस पज्जाया। " स्थिति) ये तीनों द्रव्य में नहीं होते, अपितु द्रव्य की नित्य दव्वं हि संति नियदं,
परिवर्तनशील पर्यायों में होते हैं। परन्तु पर्यायों का समूह तम्हा दव्वं हवदि सव्वं॥ द्रव्य है, अतः सब द्रव्य ही है।
६६५. समवेदं खलु दव्वं,
_संभव-ठिदि-णाससण्णिदह्रहि। एक्कम्मि चेव समये,
तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं॥
द्रव्य एक ही समय में उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य नामक अर्थों के साथ समवेत एकमेक है। इसलिए ये तीनों वास्तव में द्रव्य हैं।