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मोक्षमार्ग सूत्र
मोक्षमार्ग सूत्र
मोक्षमार्ग सूत्र १९२. मग्गो मग्गफलं ति य,
जिनशासन में 'मार्ग' तथा 'मार्गफल' ये दो निर्दिष्ट . दुविहं जिणसासणे समक्खादं। हैं। मोक्ष का उपाय 'सम्यक्त्व मार्ग' है। मार्ग का फल . मग्गो खलु सम्मत्तं,
निर्वाण है। मम्गफलं होइ णिव्वाणं॥
१९३. दंसण-णाण-चरित्ताणि,
मोक्ख-मग्गो त्ति सेविदव्वाणि। - साधूहि इदं भणिदं,
.' तेहिं दुबंधो व मोक्खो वा॥
दर्शन, ज्ञान और चारित्र को तीर्थंकरों ने मोक्ष का मार्ग कहा है। वह निश्चय और व्यवहार दो प्रकार का है। शुभ और अशुभ भाव मोक्ष के मार्ग नहीं हैं। इन भावों से तो नियमतः कर्म-बंध होता है।
१९४. अण्णाणादो णाणी, .
जदि मण्णदि सुद्ध-संपओगादो। हवदि त्ति दुक्ख-मोक्खं,
. परसमय-रदो हवदि जीवो॥
अज्ञानवश यदि ज्ञानी भी ऐसा मानता है कि शुद्ध सम्प्रयोग (भक्ति आदि शुभ भाव) से दुःख-मुक्ति होती है तो वह परसमय-रत होता है।
१९५. वद-समिदी-गुत्तीओ,
सील-तवं जिणवरेहि पण्णत्तं। कुव्वंतो वि अभव्वो,
अण्णाणी मिच्छदिट्ठी दु॥
अभव्य मनुष्य तीर्थंकर द्वारा प्ररूपित व्रत, समिति, गुप्ति, शील और तप इस व्यावहारिक चारित्र का पालन करते हुए भी चरित्र-शून्य, अज्ञानी और मिथ्यादृष्टि ही रहता है।
अण्णाया।
१९६. णिच्छय-ववहार-सरूवं,
जिन प्रवचन के अनुसार जो निश्चय और . जो रयणत्तयं ण जाणइ सो।। व्यवहार-इस उभय स्वरूप वाले रत्नत्रय (दर्शन, ज्ञान, जंकीरइ तं मिच्छा-रूवं,
चारित्र) को नहीं जानता, वह जो करता है वह सब सव्वं जिणुहिट्ठ॥ मिथ्यादृष्टि युक्त आचरण है।
१९७. सहहदि य पत्तेदि य,
रोचेदि य तह पुणो य फासेदि। धम्मं भोग-णिमित्तं,
ण दु सो कम्म-क्खय-णिमित्तं॥
अभव्य मनुष्य यद्यपि धर्म में श्रद्धा रखता है, उसकी प्रतीति करता है, उसमें रुचि रखता है, उसका पालन भी करता है, किन्तु यह सब वह प्राप्ति के लिए करता है, कर्म क्षय (निर्जरा) के लिए नहीं करता।