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मत्तं
१८४. एदे सव्वे भावा, ववहारणयं पडुच्च भणिदा हु । सव्वे सिद्ध-सहावा, सुद्ध-णया संसिदी जीवा ॥
१८५. अरसमरूवमगंधं, अव्वत्तं चेदणागुणमसहं । जाण अलिंगग्गहणं, जीवमणिद्दिट्ठ- संठाणं ॥
१८६. णिइंडो, णिहंदो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो। णीरागो णिहोसो, णिम्मूढो णिब्भयो अप्पा ||
१८७. णिग्गंथो णीरागो,
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सिल्लो सयलदोस- णिम्मुक्को । णिक्कामो णिक्कोहो
णिम्माणो णिम्मदो अप्पा ॥
१८८. णवि होदि अप्पमत्तो,
ण पत्तो जाणओ द जो भावो । दु एवं भांति सुद्धं,
णाओ जो सो उ सो चेव ॥
१८९. णाहं देहो ण मणो, ण चेव वाणी ण कारणं तेसिं । कत्ता ण ण कारयिदा, अणुमंता णेव कत्तीणं ॥
१९०. को नाम भणिज्ज बुहो, णाउं सव्वे पराइए भावे । मज्झमिणं ति य वयणं, जाणंतो अप्पयं सुद्धं ॥
१९१. अहमिक्को खलु सुखो,
णिम्ममओ णाण- दंसण - समग्गो । तम्हि ठिओ तच्चित्तो,
सव्वे एए खयं मि॥
अ. १ : ज्योतिर्मुख
जीव में ये (चतुर्गति रूप भव-भ्रमण आदि) सब भाव व्यवहारनय की अपेक्षा से कहे जाते हैं। शुद्धनय ( निश्चय नय) की अपेक्षा से संसारी जीव सिद्ध स्वरूप है।
शुद्ध नय की अपेक्षा से जीव अरस, अरूप, अगंध, अव्यक्त, चैतन्य गुणवाला, अशब्द, अलिंगग्राह्य (अनुमान से परे) और संस्थान - रहित (निराकार) है।
आत्मा निर्दण्ड (मन, वचन और काय रूप दण्ड से रहित), निर्द्वन्द्व - ( अकेला), निर्मम - (ममत्व रहित), निष्कल - ( शरीर रहित), निरालम्ब - ( पर द्रव्यालंबन से रहित), वीतराग, वीतद्वेष, अमूढ तथा निर्भय है।
आत्मा निग्रंथ, नीराग, निःशल्य, सर्व दोषों से निर्मुक्त, निष्काम, निःक्रोध, निर्मान तथा निर्मद है।
आत्मा ज्ञायक है। जो ज्ञायक होता है वह न अप्रमत्त होता है और न प्रमत्त। जो अप्रमत्त और प्रमत्त नहीं होता, वह शुद्ध होता है। आत्मा ज्ञायक रूप में ही ज्ञात है, तथा वह शुद्ध अर्थ में ज्ञायक ही है। उसमें ज्ञेयकृत अशुद्धता नहीं है । '
मैं (आत्मा) न शरीर हूं, न मन हूं, न वाणी हूं और न उनका कारण हूं। मैं न कर्ता हूं, न कराने वाला हूं और न कर्ता का अनुमोदक ही हूं।
आत्मा को शुद्ध - चैतन्यमय जानने वाला, शेष सब भाव पराए हैं - यह जान कर, कौन ज्ञानी कहेगा - यह पदार्थ मेरा है।
मैं एक हूं, शुद्ध हूं, ममतारहित हूं, और ज्ञान दर्शन से परिपूर्ण हूं। अपने इस शुद्ध स्वभाव में स्थित और तन्मय होकर मैं इन सब ( वैभाविक पर्यायों) का क्षय करता हूं।
१. गुणस्थानों की दृष्टि से जीव को छठे गुणस्थान तक प्रमत्त और सातवें से अप्रमत्त कहा जाता है। ये दोनों दशाएं शुद्ध जीव की नहीं हैं।