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________________ साधना और निष्पत्ति साधना का प्रथम वर्ष तए णं सामी अहासंनिहिए सव्वे नायए महावीर मुनि बन गए। उपस्थित सभी ज्ञातिजनों से आपुच्छित्ता णायसंडबहिया चउभागऽवसेसाए पूछ ज्ञातखंड उद्यान से विहार किया। एक मुहूर्त दिन शेष पोरुसीए कम्मारम्गामं पहावितो।...... रहा तब वे कर्मारग्राम में पहुंचे। तत्थ य दो पंथा एगो पाणिएणं एगो पालीए। कारग्राम में जाने के दो मार्ग थे-एक जल मार्ग और . सामी पालीए जा वच्चति ताव पोरुसी मुहुत्तावसेसा दूसरा सेतु मार्ग। महावीर सेतु मार्ग से चले और गांव जाता, संपत्तो य तं गामं। तस्स बाहिं सामी पडिमं बाहर जाकर प्रतिमा में स्थित हो गए। ठितो। संकल्पों का सुमेरू : उपसर्गों की आंधी , चत्तारि साहिए मासे : . महावीर के शरीर में विद्यमान सुगंध आकर्षित होकर ण-जाइया आगम्म। भ्रमर आदि प्राणी भगवान के शरीर पर बैठ रसपान का अमिरुना का विरिंसु प्रयत्न करते। रस प्राप्त न होने पर क्रुद्ध हो भगवान के आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु॥ । शरीर पर डंक लगाते। यह क्रम चार मास से अधिक समय तक चलता रहा। स हि भगवान् दिव्वेहिं गोसीसातीएहिं चंदणेहिं महावीर का शरीर दिव्य गोशीर्ष चंदन, सुगंधित चुन्नेहिं तहा वासेहि य पुप्फेहि य वासियदेहो। चूर्ण, पटवास और पुष्पों से वासित था। अभिनिष्क्रमण निक्खमणाभिसेगेण य अभिसित्तो विसेसेणं इंदएहिं । के समय इन्द्रों द्वारा चंदन आदि से उन्हें वासित किया चंदणादिगंधेहिं वासितो। गया था। अतो तस्स पव्वइयस्स विसेसओ चत्तारि साहिए प्रवजित होने के चार महीने से अधिक समय तक मासे सो दिव्वो गंधोण फिडितो। उनके शरीर से दिव्य सुगंध नहीं मिटी। अतो से सुरभिगंघेणं भमरा मधुकरा य पाण- उस दिव्य गंध से दूर से ही आकृष्ट हो भ्रमर, जातीया बहवे दूराओवि पुष्फितेवि लोचकुंदादि- मधुकर लोध्र, कुंद आदि के पुष्पित वनखंडों को छोड़ वणसंडे चतिन्ति। दिव्वेहिं गंधेहिं आगरिसिता तं महावीर के पास आते। उनके चारों ओर मंडराते। शरीर तस्स देहमागम्म आरुज्झ कायं विहरंति विंधति को बींधते। पृष्ठभाग की ओर गुजारव करते। मकरंद न य। केह. मग्गतो गुगुममेंता समन्नेति। जदा पुण मिलने पर वे क्रुद्ध हो नख और मुख से काटने लगते। किंचिविण साएंति तदा आरुसिया णहेहि य मुहेहि य खायंति। वसंतकालेवि किर जं किंचि रोमकूवेसु सिणेहं बसन्तऋतु में रोमकूपों में जब तक स्नेह होता, तब
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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