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________________ ज्योतिर्मुख मङ्गलसूत्र मंगल सूत्र १.णमो अरहताणं। णमो सिद्धाणं। णमो आयरियाणं। णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं॥ अर्हतों को नमस्कार। सिद्धों को नमस्कार। आचार्यों को नमस्कार। उपाध्यायों को नमस्कार। लोकवर्ती सर्वसाधुओं को नमस्कार। २. एसो पंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं॥ यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों का विनाश करनेवाला है और समस्त मंगलों में प्रथम मंगल है। ३.५. अरहंता मंगलं। सिद्धा मंगलं। साहू मंगलं। केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं॥ अर्हत मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं। साधु मंगल हैं। केवलि-प्रणीत धर्म मंगल है। अरहंता लोगुत्तमा। सिद्धा लोगुत्तमा। साहू लोगुत्तमा। _ केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो॥ अर्हत् लोकोत्तम हैं। सिद्ध लोकोत्तम हैं। साधु लोकोत्तम हैं। केवलि-प्रणीत धर्म लोकोत्तम है। अरहते सरणं पव्वज्जामि। सिद्धे सरणं पव्वज्जामि। साहू सरणं पव्वज्जामि। केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि॥ अर्हतों की शरण स्वीकार करता हूं। सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूं। साधुओं की शरण स्वीकार करता हूं। केवलि-प्रणीत धर्म की शरण स्वीकार करता हूं। ६. मायहि पंच वि गुखे, मंगलचउसरणलोयपरियरिए। गर-सुर-खेयर-महिए, आराहणणायगे वीरे॥ मंगलस्वरूप, चतुःशरणरूप तथा लोकोत्तम, परम आराध्य एवं नर-सुर-विद्याधरों द्वारा पूजित, कर्मशत्रु के विजेता पंच गुरुओं 'परमेष्ठी' का ध्यान करना चाहिए। ७. पणघाइकम्ममहणा,तिहुवणवरभव्व-कमलमत्तंडा। अरिहा अणंतणाणी, अणुवमसोक्खा जयंतु जए॥ सघन घातिकर्मों का आलोडन करनेवाले, तीनों लोकों में विद्यमान भव्यजीवरूपी कमलों को विकसित करनेवाले सूर्य, अनंतज्ञानी और अनुपम सुखमय अर्हत् की जगत् में जय हो। . भट्ठविहकम्मवियला, णिठियकज्जा पणठ्ठसंसारा। दिठ्ठसयलत्थसारा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंत॥ अष्टकर्मों से रहित, कृतकृत्य, जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त तथा सकल तत्त्व-रहस्य के द्रष्टा सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करें।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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