________________
आत्मा का दर्शन
६४८
खण्ड-४
१५.समुच्छिज्जिहिंति सत्यारो सव्वे पाणा अणेलिसा।
गंठिगा वा भविस्संति सासयं ति व णो वए॥
शास्ता उच्छिन्न होंगे। सब प्राणी एक दूसरे से अनीदृश हैं। सब प्राणी ग्रन्थि-कर्मबद्ध होंगे अथवा शास्ता-शाश्वत होंगे, सब प्राणी सदृश या कर्ममुक्त होंगे-ऐसा न बोले।
१६. एएहिं दोहिं ठाणेहिं ववहारो ण विज्जई।
एएहिं दोहिं ठाणेहिं अणायारं विजाणए।
इन दोनों स्थानों से व्यवहार घटित नहीं होता। इन दोनों स्थानों से अनाचार होता है-ऐसा जाने।
१७. जे केइ खुडुगा पाणा
अदुवा संति महालया।
जो कोई छोटे प्राणी हैं अथवा बड़े प्राणी हैं उन्हें मारने पर कर्म का बंध सदृश होता है या असदृश होता है-ऐसा न बोले।
सरिसं तेहिं वरं ति
असरिसं ति य णो वए॥
१८.एएहिं दोहिं ठाणेहिं ववहारो ण विज्जई। इन दोनों स्थानों से व्यवहार घटित नहीं होता। इन एएहिं दोहिं ठाणेहिं अणायारं विजाणए॥ दोनों स्थानों से अनाचार होता है-ऐसा जाने।
- विभज्यवाद
१९.विभज्जवायं च वियागरेज्जा।
प्रतिपादन में विभज्यवाद-भजनीयवाद या स्याद्वाद का प्रयोग करे।
१. किसी बात को विभक्त कर अथवा विश्लेषणपूर्वक कहने की पद्धति का नाम विभज्यवाद है।