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प्रायोगिक दर्शन
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अ.१४: नयवाद
२५.नामाइ भेअ सहत्य
निक्षेप की परिभाषा
जिस वस्तु के नाम आदि भेदों में शब्द, अर्थ और बुद्धिपरिणाम भावओ निययं। बुद्धि का परिणमन होता है-वाचक, वाच्य और ज्ञान तीनों
की परिणति होती है, वह सर्ववस्तु इस लोक में निश्चित चउपज्जायं तयं सव्वं॥ ही नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-इन चार पर्यायों से
युक्त है।
जंवत्थुमत्थि लोए
२६.अह्मा वत्थूभिहाणं
नाम ठवणा य जो तयागारो।
कारणया से दव्वं
वस्तु का अभिधान नाम निक्षेप है। उसका आकार स्थापना निक्षेप है। वस्तु की कारणता-उत्पत्ति का हेतु द्रव्य निक्षेप और कार्य रूप में उसकी परिणति भाव निक्षेप है।
__कज्जावन्नं तयं भावो॥
२७.जत्य यजं जाणेज्जा ,
जहां जितने निक्षेप ज्ञात हो, वहां उन सभी (निक्षेपों) निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं। का न्यास किया जाए। जहां बहुत निक्षेप ज्ञात न हों, वहां - जत्थ वि य न जाणेज्जा
कम से कम निक्षेप चतुष्टय (नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव) ... चउक्कयं निक्खिवे तत्थ॥ का न्यास किया जाए।
२८. नामजिणा जिणणामा ठवणजिणा हुंति पडिमाओ। . दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था।
'जिन' यह जिन का नाम निक्षेप है। 'जिन प्रतिमा' जिन का स्थापना निक्षेप है। 'जिन जीव' जिन का द्रव्य निक्षेप है।
'समवसरण में विराजमान जिन' जिन का भाव निक्षेप है।