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________________ आत्मा का दर्शन ६०४ ८९. कक्खडे, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिखे, ण लुक्खे। ९०. ण काऊ । ९१. रुहे। ९२. ण संगे । ९३. ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णा । ९४. परिण्णे सण्णे । ९५. उबमा ण विज्जए । ९६. अल्वी सत्ता । ९७. अपयस्स पयं णत्थि । ९८. सेण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे । खण्ड-४ वह न कर्कश है, न मृदु है, न गुरु है, न लघु है, न शीत है, न उष्ण है, न स्निग्ध है और न रूक्ष है। वह शरीरवान नहीं है। वह जन्मधर्मा नहीं है। वह लेप - आसक्ति युक्त नहीं है। वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है। वह परिज्ञ है, संज्ञ है-सर्वतः चैतन्यमय है। उसका बोध करने के लिए कोई उपमा नहीं है। वह अमूर्त अस्तित्व है। वह पदातीत है। उसका बोध करने के लिए कोई पद नहीं है। वह न शब्द है, न रूप है, न गंध है, न रस है और न स्पर्श है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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