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आत्मा का दर्शन
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८९. कक्खडे, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिखे, ण लुक्खे।
९०. ण काऊ ।
९१. रुहे।
९२. ण संगे ।
९३. ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णा ।
९४. परिण्णे सण्णे ।
९५. उबमा ण विज्जए ।
९६. अल्वी सत्ता ।
९७. अपयस्स पयं णत्थि ।
९८. सेण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे ।
खण्ड-४
वह न कर्कश है, न मृदु है, न गुरु है, न लघु है, न शीत है, न उष्ण है, न स्निग्ध है और न रूक्ष है।
वह शरीरवान नहीं है।
वह जन्मधर्मा नहीं है।
वह लेप - आसक्ति युक्त नहीं है।
वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है।
वह परिज्ञ है, संज्ञ है-सर्वतः चैतन्यमय है।
उसका बोध करने के लिए कोई उपमा नहीं है।
वह अमूर्त अस्तित्व है।
वह पदातीत है। उसका बोध करने के लिए कोई पद नहीं है।
वह न शब्द है, न रूप है, न गंध है, न रस है और न स्पर्श है।