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________________ विश्वशांति और निःशस्त्रीकरण १. जे य बुद्धा अइक्कंता जे य बुद्धा अणागया। जो बुद्ध (तीर्थंकर) हो चुके हैं और जो भविष्य में संती तेसिं पइट्ठाणं भूयाणं जगई जहा॥ होंगे, उन सबका आधार है शांति, जैसे जीवों का पृथ्वी। ___ मनुष्य का वर्गीकरण : आधार अशांति और शांति का २. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में कुछ मनुष्य संतेगइया मणुस्सा भवंति-महिच्छा महारंभा महान इच्छावाले महाआरंभी, महापरिग्रही, अधार्मिक, महापरिग्गहा अधम्मिया अधम्माणुया अधम्मिट्ठा अधर्म का अनुगमन करने वाले, अधर्म में स्थित होने अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो वाले, अधर्म का आख्यान करने वाले, अधर्म का जीवन अधम्मपलज्जणा अधम्मसीलसमुदाचारा अधम्मेण जीने वाले, अधर्म को देखने वाले, अधर्म में अनुरक्त, चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। अधर्मयुक्त शील और आचार वाले, अधर्म के द्वारा आजीविका करने वाले होते हैं। ३. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसीलसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा . .विहरंति। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में कुछ मनुष्य अल्प इच्छा वाले अल्प आरंभ वाले, अल्प परिग्रह वाले, धार्मिक, धर्म का अनुगमन करने वाले, धर्म में स्थित होने वाले, धर्म का आख्यान करने वाले, धर्म को देखने वाले, धर्म में अनुरक्त, धर्मयुक्त शील और आचार वाले, धर्म के द्वारा आजीविका करने वाले होते हैं। ४. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में कुछ मनुष्य संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-अणारंभा अनारंभी, अपरिग्रही, धार्मिक, धर्म का अनुगमन करने अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुगा धम्मिट्ठा वाले, धर्म में स्थित होने वाले, धर्म का आख्यान करने धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा वाले, धर्म को देखने वाले, धर्म में अनुरक्त, धर्मयुक्त धम्मसीलसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा शील और आचार वाले, धर्म के द्वारा आजीविका करने विहरंति। वाले होते हैं। शस्त्र के प्रकार ५. दसविधे सत्थे पण्णत्ते, तं जहा शस्त्र के दस प्रकार प्रज्ञप्त हैंसत्थमग्गी विसं लोणं सिणेहो खारमंबिलं। १. अग्नि, २. विष, ३. लवण, ४. स्नेह, ५. क्षार, दुप्पउत्तो मणो वाया काओ भावो य अविरती॥ ६. अम्ल, ७. दुष्प्रयुक्त मन, ८. दुष्प्रयुक्त वचन, ९. दुष्प्रयुक्त काया, १०. अविरति।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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