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________________ प्रायोगिक दर्शन ५६५ अ. १० : वीतराग साधना १३.एवं ससंकप्पविकप्पणासो समता में उपस्थित व्यक्ति के संकल्प और विकल्प संजायई समयमुवट्ठियस्स। का नाश हो जाता है। जब वह अर्थों-विषयों का संकल्प अत्थे असंकप्पयओ तओ से नहीं करता है तो उसकी काम विषयों में होने वाली तृष्णा पहीयए कामगुणेसु तण्हा॥ भी क्षीण हो जाती है। १४.ण सक्का ण सोउं सहा सोयविसयमागता। श्रोत्रेन्द्रिय में आने वाले शब्द न सुने, यह शक्य नहीं है। किन्तु उनमें राग-द्वेष न करे, यह शक्य है। अतः संयमी पुरुष उनके प्रति होने वाले राग-द्वेष का वर्जन करे। रागदोसा उ जे तत्थ . ते भिक्खू परिवज्जए॥ १५.णो सक्का रूवमदहें चक्खविसयमागयं। रागदोसा उ जे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए॥ चक्षु इन्द्रिय के सामने आने वाले रूप न देखे, यह शक्य नहीं है। किन्तु राग-द्वेष न करे, यह शक्य है। अतः संयमी पुरुष उनके प्रति होने वाले राग द्वेष का वर्जन करे। १६.णो सक्का ण गंधमग्घाउं णासाविसयमागयं। घ्राणेन्द्रिय में आनेवाली गंध का आघ्राण न करे, यह शक्य नहीं है। किन्तु उसमें राग-द्वेष न करे, यह शक्य है। अतः संयमी पुरुष उसके प्रति होने वाले राग-द्वेष का रागदोसा उजे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए॥ १७.णो सक्का रसमणासाउं जीहाविसयमागयं। रागदोसा उ जे तत्थ ते भिक्खू परिवज्जए। रसनेन्द्रिय द्वारा चखे जानेवाले रस का आस्वाद न ले, यह शक्य नहीं है। किंतु उसमें राग-द्वेष न करे, यह शक्य है। अतः संयमी पुरुष उसके प्रति होने वाले रागद्वेष का वर्जन करे। १८.णो सक्का ण संवेदेउं फासविसयमागयं। . रागदोसा उ जे तत्थ ते भिक्ख परिवज्जए॥ स्पर्शनेन्द्रिय से स्पृष्ट होनेवाली वस्तु का संस्पर्श न करे, यह शक्य नहीं है। किन्तु उसमें राग-द्वेष न करे, यह शक्य है। अतः संयमी पुरुष उसके प्रति होने वाले रागद्वेष का वर्जन करे। १९.वत्थगन्धमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य। अच्छंदा जे न भुंजंति न से चाइ त्ति वुच्चइ॥ जो परवश-अभावग्रस्त होने के कारण वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री, शयन और आसन का उपभोग नहीं करता, वह त्यागी नहीं कहलाता। २०.जे य कंते पिए भोए लद्धे विपिट्ठि कुव्वई। साहीणे चयइ भोए से ह चाइ त्ति वुच्चई। त्यागी वही कहलाता है जो कांत और प्रिय भोग उपलब्ध होने पर भी उनकी ओर से पीठ फेर लेता है, स्वेच्छा से उनका परित्याग करता है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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