SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म १. धम्मोमंगलमुक्किळं, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति ,जस्स धम्मे सया मणो॥ धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप . उसके स्वरूप हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। २. दुविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा सुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे चेव। धर्म के प्रकार धर्म के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं१. श्रुत धर्म। २. चारित्र धर्म। १. तिविहे भगवता धम्मे पण्णत्ते, तं जहा १. सुअधिज्झिते, २. सुज्झाइते, ३. सुतवस्सिते जया सुअधिज्झितं भवति तदा सुन्झाइतं भवति। जया सुल्झाइतं भवति तदा सुतवस्सितं भवति। से सुअधिज्झिते सुज्झाइते सुतवस्सिते सुयक्खाते णं भगवता धम्मे पण्णत्ते। धर्म के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. सम्यक् स्वाध्याय २. सम्यक् ध्यान ३. सम्यक् तप जब सम्यक् स्वाध्याय होता है, तब वह सम्यक् ध्यान होता है। जब सम्यक् ध्यान होता है, तब वह सम्यक् तप होता है। सम्यक् स्वाध्याय, सम्यक् ध्यान और सम्यक् तप का अर्थ है-स्वाख्यात धर्म। धर्म के द्वार 2. चत्तारि धम्मदारा पण्णत्ता, तं जहा १.खंती. २. मुत्ती ३. अज्जवे ४. महवे। धर्म के चार द्वार प्रज्ञप्त है१. क्षांति २. मुक्ति ३. आर्जव ४. मार्दव। श्रामण्य का सार : उपशम ५. भिक्खू य अहिगरणं कटु तं अहिगरणं विओसवित्ता विओसवियपाहुडे इच्छाए परो आढाएज्जा, इच्छाए परो नो आढाएज्जा, इच्छाए पिरो अब्भुटेज्जा, इच्छाए परो नो अब्भुढेज्जा, इच्छाए परो वंदेज्जा, इच्छाए परो नो वदेज्जा, इच्छाए परो संभंजेज्जा, इच्छाए परो नो संभुंजेज्जा, इच्छाए परो संवसेज्जा, इच्छाए परो किसी के साथ कलह होने पर भिक्षु उसका उपशमन कर दे। कलह का उपशमन कर देने पर सामने वाला उसे बहमान दे या न.दे, उसके आने पर खड़ा हो या न हो, उसे वंदन करे या न करे, उसके साथ भोजन करे या न करे, उसके साथ रहे या न रहे, वह कलह का उपशमन करे या न करे।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy