SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा का दर्शन १४. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अछुट्ठसया चोइसपुव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खर सन्निवाईणं जिणो विव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चोइसपुव्वीणं संपया होत्था ॥ १५. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स चोइस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवलनाणीणं, एक्कारस सया वेउव्वियाणं, अछट्ठमसया विउलमईणं, छस्सया वाईणं छ सया रिउमईणं बारस सया अणुत्तरोववाइयाणं संपया होत्था ॥ ३८ १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए तीसं वासाई अगारवासमज्झेवसित्ता तेसीतिं राइंदियाइं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, देसूणाई सत्तरं वासाहं केवलिपरियायं पाउणित्ता, बहुपडि - पुण्णाई सत्तरिं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालित्ता खीणे वेयणिज्जाउयनामगोत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसम - सूसमाए समाए बहुवीहक्कंताए जे से वासाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे -सावणसुद्धे, तस्स णं सावण-सुद्धस्स अट्ठमी पक्खेणं उप्पिं सम्मेयसेलसिहरंसि अप्प - चोत्तीसइमे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पुव्वण्हकालसमयंसि वग्घारियपाणी कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ खण्ड - १ पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के अजिन किन्तु जिनतुल्य ३५० सर्वाक्षर संयोग के ज्ञाता यावत् चतुर्दश पूर्वधरों की उत्कृष्ट संपदा थी। पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व के १४०० अवधिज्ञानी, १००० केवलज्ञानी, ११०० वैक्रियलब्धिसंपन्न, ७५० विपुलमतिमनः पर्यवज्ञानी, ६०० वादी, ६०० ऋजुमति मनः पर्यवज्ञानी, १२०० अनुत्तरौपपातिक अनुत्तर विमान को प्राप्त करने वालों की उत्कृष्ट संपदा थी। पार्श्व का परिनिर्वाण उस काल उस समय पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्व ३० वर्ष तक गृहवास में रहकर तत्पश्चात् संयमी बने । ८३ दिन-रात छद्मस्थ पर्याय में रहकर कुछ न्यून ६० वर्ष तक केवली पर्याय में रहे । १०० वर्ष पर्यंत अपना आयुष्य भोगकर अवसर्पिणी काल के दुःषम- सुषमा नामक आरे के प्रायः व्यतीत होने पर वर्षाऋतु में श्रावण शुक्ला अष्टमी को सम्मेद शिखर पर्वत पर स्वयं को मिलाकर ३४० पुरुषों के साथ एक मास का अनशन कर दिन के पूर्वार्ध समय में विशाखा नक्षत्र का योग होने पर ध्यान मुद्रा में अवस्थित रहकर वेदनीय कर्म, आयुष्य कर्म, नाम कर्म, गोत्र कर्म क्षीण होते ही कालगत हुए यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए, निर्वाण प्राप्त किया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy