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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
__ न पडितप्पंतं वा सातिज्जति।
हुआ हो, इस स्थिति में वह रुग्ण मुनि को भोजन-पानी आदि से तृप्त नहीं करता है और न करनेवाले दूसरे का अनुमोदन करता है।
३९.जे भिक्खू गिलाणवेयावच्चे अब्भुदिठए गिलाण- पाउग्गे दव्वजाए अलब्भमाणे, जो तं न पडियाइ- क्खति, न पडियाइक्खंतं वा सातिज्जति। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं।
जो भिक्षु रुग्ण मुनि की सेवा में उपस्थित है, रुग्ण मुनि ने कोई द्रव्य मंगवाया, वह द्रव्य उपलब्ध नहीं हुआ, रुग्ण मुनि को पुनः उसकी सूचना नहीं देता और न देनेवाले दूसरे का अनुमोदन करता है-वह चातुर्मासिक गुरु प्रायश्चित्त का भागी होता है।