________________
सम्यकचारित्र
१. जम्हा दंसणनाणा संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं।
चारित्तजुया दिति उ विसिस्सए तेण चारित्तं॥
दर्शन और ज्ञान-ये अकेले रहकर पूरा फल नहीं देते। ये चारित्र से जुड़कर पूरा फल देते हैं। इसलिए ज्ञान-दर्शन से सम्पन्न होकर चारित्र विशिष्ट बन जाता है।
२. असुहादो विणिवित्ती,
- सुहे पवित्तीय जाण चारित्तं॥ बदसमिदिगुत्तिरूवं,
. ववहारणया दु जिणभणियं॥
अशुभ से निवृत्त होना और शुभ में प्रवृत्त होना चारित्र है। व्रत, समिति एवं गुप्ति का पालन व्यवहारनय सम्मत चारित्र है।
३. णिच्छयणयस्स एवं
अप्पा अप्सम्मि अप्पणे सुरदो। सो होदि हु सुचरित्तो
जोई सो लहइ
आत्मा से आत्मा में लीन रहना निश्चयनय सम्मत चारित्र है। चारित्र की सम्यक् आराधना करने वाला योगी निर्वाण को प्राप्त होता है।
४. जंजाणिऊण जोई,
___- परिहारं कुणइ पुण्णपावाणं। . तं चारित्तं भणियं,
अवियप्पं कम्मरहिएहिं॥
जिसे जानकर योगी पुण्य और पाप दोनों का परिहार कर देता है, वह निर्विकल्प चारित्र-संवर अथवा निर्विकल्प समाधि है।
५. नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सरहे। ___चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्झई॥
___ जीव ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से निग्रह करता है और तप से शोधन करता है-अर्जित संस्कारों को क्षीण करता है।
चास्त्रि धर्म के प्रकार ६. चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
अगारचरित्तधम्मे चेव। अणगारचरित्तधम्मे चेव।
चारित्र धर्म के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैंगृहस्थ का चारित्रधर्म। मुनि का चारित्रधर्म।
महाबीर का अभिनिष्क्रमण '७. तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे
पढमे पक्खे-मग्गसिरबहुले, तस्स णं
हेमंत ऋतु के प्रथम मास का पहला पक्ष। मिगसर का कृष्णपक्ष। दशमी का श्रेष्ठ दिन। विजयमुहूर्त। उत्तरा