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________________ प्रायोगिक दर्शन ४४३ अ.३ : सम्यग्ज्ञान ईहा, अवाय और धारणा। श्रुतज्ञान क्या है? उम्गहो ईहा अवाए धारणा। से किं तं सुयणाणं? सुयणाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-अंगपविठं च, अंगबहिरगं च। से किं तं ओहिणाणं? ओहिणाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-भवपच्चइयं च खओवसमियं च। से किं तं मणपज्जवणाणे? मणपज्जवणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उज्जुमई य विउलमई य। से किं तं केवलणाणं? केवलणाणं दुबिहं पण्णत्तं, तं जहा-भवत्थकेवलणाणं च सिद्धकेवलणाणं च। तत्य णं जे से आभिणिबोहियणाणे, से णं ममं अत्थि। तत्थ णं जे से सुयणाणे, से वि य ममं अत्थि। तत्थ णं-जे से ओहिणाणे, से वि य ममं अस्थि। तत्थं णं जे से मणपज्जवणाणे, से वि य ममं अत्थि। तत्थ णं जे से केवलणाणे से णं ममं नत्मि। से णं अरहताणं भगवंताणं। इच्चेएणं पएसी! अहं तव चउब्विहेणं छाउमथिएणं णाणेणं इमेयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकम्पं समुप्पण्णं जाणामि-पासामि। तं (नाणं) समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं • 'जहा-पच्चक्खं च परोक्खं च। से किं तं पच्चक्खं? पचाक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-इंदिय-पच्चक्खं च नोइंदियपच्चक्खं च। श्रुतज्ञान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य। अवधिज्ञान क्या है? अवधिज्ञान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-भवप्रत्ययिक, (जन्मसिद्ध) और क्षायोपशमिक (साधना सिद्ध)। मनःपर्यवज्ञान क्या है? मनःपर्यवज्ञान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-ऋजुमति और विपुलमति। केवलज्ञान क्या है? केवलज्ञान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-संसारी आत्मा का केवलज्ञान और मुक्त आत्मा का केवलज्ञान। जो आभिनिबोधिक ज्ञान है, वह मुझे प्राप्त है। जो श्रुतज्ञान है, वह भी मुझे प्राप्त है। जो अवधिज्ञान है, वह भी मुझे प्राप्त है। जो मनःपर्यवज्ञान है, वह भी मुझे प्राप्त है। जो केवलज्ञान है, वह मुझे प्राप्त नहीं है। वह अर्हतों को होता है। प्रदेशी! मैं चतुर्विध छामस्थिकज्ञान से तुम्हारे आंतरिक चिंतन, अभिलाषा और मनोगत संकल्प को जानता-देखता हूं। संक्षेप में ज्ञान के दो प्रकार प्रज्ञप्स हैं-१. प्रत्यक्ष, २. परोक्ष। प्रत्यक्ष ज्ञान क्या है? प्रत्यक्ष ज्ञान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-१. इन्द्रियप्रत्यक्ष, २. नोइंद्रिय प्रत्यक्ष। २३.से किं तं परोक्खं? परोक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-आभिणिबोहियनाणपरोक्खं च सुयनाणपरोक्खं च। परोक्ष ज्ञान क्या है? परोक्ष ज्ञाम के दो प्रकार प्रज्ञप्स हैं-आभिनिबोधिक ज्ञान परोक्ष, श्रुतज्ञान परोक्ष।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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