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सम्यग्ज्ञान
१. जेण तच्चं विबुझेज्ज, जेण चित्तं णिरुज्झदि। ___ जेण अत्ता विसुज्झेज्ज, तं गाणं जिणसासणे॥
जिससे तत्त्व का बोध होता है. चित्त का निरोध होता है, आत्मा विशुद्ध होती है, उसे जिन-शासन में ज्ञान कहा गया है।
जिससे राग-विमुक्ति होती है, श्रेय में अनुरक्ति होती है और मैत्री भाव पुष्ट होता है, उसे जिन-शासन में ज्ञान कहा गया है।
२. जेण रागा विरज्जेज्ज, जेण सेएसु रज्जदि। ... जेण मित्ती पभावेज्ज, तं गाणं जिंणसासणे॥
ज्ञान का फल : आचार ३. पढमं नाणं तओ दया।
पहले ज्ञान होता है फिर दया-आचरण/संयम।
४. अन्नाणी किं काही, किं वा नाहि छेय-पावगं?
५. सोच्चा जाणा कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं।
उभयं पि जाणई सोच्चा. जं छेयं तं समायरे॥
अज्ञानी क्या करेगा? क्या क्या जानेगा-क्या श्रेय है और क्या पाप? __ प्राणी सुनकर कल्याण को जानता है और सुनकर ही पाप को जानता है। कल्याण और पाप सुनकर ही जाने जाते हैं। इसलिए जो श्रेय है. उसी का आचरण करे।।
६. जो जीवे वि न याणाइ, अजीवे वि न याणई। .. जीवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाहिह संजमं? ।
जो जीव को भी नहीं जानता, अजीव को भी नहीं जानता। जीव और अजीव-दोनों को नहीं जानता, वह संयम को कैसे जानेगा?
७. जो जीवे वि वियाणाइ, अजीवे वि वियाणई। - जीवाजीवे वियाणंतो, सो हु नाहिइ संजमं॥
जो जीव को जानता है, अजीव को जानता है। जीव और अजीव-दोनों को जानता है, वही संयम को जानेगा।
८. जया जीवे अजीवे य, दो वि एए वियाणई। - तया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणई॥
जीव और अजीव-दोनों को जानता है, तब वह सब जीवों की विविध गतियों को जान लेता है-पुनर्जन्म को जान लेता है।
९. जया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणई।
तया पुण्णं च पावं च, बंधं मोक्खं च जाणई।
सब जीवों की विविध गतियों को जान लेता है-पुनर्जन्म का ज्ञान हो जाता है, तब वह पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष को जान लेता है।