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सम्यग्दर्शन
१. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलिपण्णत्तं धम्मं
लभेज्ज सवणयाए, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे
दो हेतुओं को जानकर और छोड़कर आत्मा केवली भाषित धर्म को सुन सकता है। वे दो हेतु हैं। आरंभ (हिंसा) और परिग्रह।
चेव।
२. दो ठाणाइं परियाणेत्ता आया केवलं बोधिं दो हेतुओं को जानकर और छोड़कर आत्मा विशुद्ध बुज्झेज्जा, तं जहा-आरंभे चेव. परिग्गहे चेव। बोधि का अनुभव कर सकता है। वे दो हेत हैं-आरंभ और
परिग्रह। सम्यक्त्व की परिभाषा ३. जीवाजीवा य बंधो य पुण्णं पावासवो तहा। जीव, अजीव, बंध, पुण्य पाप, आश्रव, संवर,
संवरो निज्जरा मोक्खो संतेए तहिया नव॥ निर्जरा, और मोक्ष-ये नौ तत्त्व हैं।
१. तहियाणं तु भावाणं सम्भावे उवएसणं। - भावेणं सहहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं॥
इन तत्त्वों के अस्तित्व में जो भावपूर्वक श्रद्धा करता है, उस श्रद्धा का नाम है सम्यक्त्व-सम्यक् दर्शन।
५. अरहंतो मह देवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो। - जिणपण्णत्तं तत्तं इय सम्मत्तं मए गहियं॥
अर्हत् मेरे देव हैं। जीवन भर आचार की सम्यक् साधना करने वाले साधु मेरे गुरु हैं। अर्हत् द्वारा प्रतिपादित तत्त्व मेरा धर्म है। यह सम्यक्त्व मैंने ग्रहण किया है।
सम्यक्त्व के प्रकार ६. सम्मत्तं दुविह-अभिगम-सम्मत्तं निसग्ग-सम्मत्तं
सम्यक्त्व के दो प्रकार हैं-अभिगम सम्यक्त्व, निसर्ग सम्यक्त्व।
च।
मिथ्यात्व के प्रकार ७. दसविहे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा
अधम्मे धम्मसण्णा। धम्मे अधम्मसण्णा। उम्मग्गे मग्गसण्णा। मम्गे उम्मग्गसण्णा। अजीवेसु जीवसण्णा। जीवेसु जीवसण्णा।
मिथ्यात्व के दस प्रकार प्रज्ञप्त हैंअधर्म में धर्म की संज्ञा। धर्म में अधर्म की संज्ञा। उन्मार्ग में मार्ग की संज्ञा। मार्ग में उन्मार्ग की संज्ञा। अजीव में जीव की संज्ञा। जीव में अजीव की संज्ञा।