SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समत्व वंदना और जिज्ञासा १. केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे। उभओ निसण्णा सोहंति चंदसूरसमप्पभा॥ केशी अर्हत् पार्श्व के शिष्य और गौतम भगवान् महावीर के शिष्य थे। चन्द्र और सूर्य के समान प्रभास्वर कुमारश्रमण केशी और महान् यशस्वी गौतम दोनों श्रावस्ती नगरी के तिंदुक वन में बैठे हुए शोभित हो रहे हैं। केशी उवाच : २. अंधयारे तमे घोरे चिट्ठति पाणिणो बहू। को करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं? केशी-असूझ गहन अंधकार में बहुत लोग रह रहे हैं। इस समूचे लोक में उनके लिए प्रकाश कौन करेगा? गौतम उवाच: ३. उम्गओ विमलो भाणू सव्वलोगप्पभंकरो। गौतम-समूचे लोक में प्रकाश करने वाला एक निर्मल .. सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं॥ सूर्य उदित हो गया है। वह सम्पूर्ण लोक को प्रकाशित करेगा। ४. जयइ जगजीवजोणी-वियाणओ जगगुरू जगाणंदो। जगणाहो जगबंधू, जयइ जगप्पियामहो भयवं॥ जगत् की जीव योनियों के ज्ञाता, जगद्गुरु, जगत् को आनंद देने वाले, जगन्नाथ, जगत्-बंधु और जगत्पितामह भगवान् महावीर की जय हो! ५. जयइ सुयाणं पभवो,तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ। जयइ गुरू लोगाणं, जयइ महप्पा महावीरो॥ शास्त्र के मूलस्रोत, अंतिम तीर्थंकर, लोकगुरु, महान आत्मा महावीर की जय हो। केशी उवाच : ६. कहं व णाणं? कह दंसणं से? सीलं कहं णायसुयस्स आसि? जाणासि णं भिक्खु! जहातहेणं अहासुयं बूहि जहा णिसंतं॥ केशी-गौतम! ज्ञातपुत्र भगवान महावीर का ज्ञान कैसा है? दर्शन कैसा है? उनका शील/सदाचार कैसा है? आप उसके प्रत्यक्ष द्रष्टा हैं। इसलिए यथार्थ रूप में जैसा आप जानते हैं, जैसा आपने सुना है, जैसा आपने अवधारित/हृदयंगम किया है, वह हमें बताएं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy