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________________ संबोधि ३८१ अ. १६ : मनःप्रसाद शुभ्र : नींद के लिए उपयोगी। नारंगी : दमा तथा वात-व्याधियों के रोगों को मिटाने में उपयोगी। बैंगनी : शरीर के तापमान को कम करने में उपयोगी। रंगों का मन पर प्रभाव काला रंग मनुष्य में असंयम, हिंसा और क्रूरता के विचार उत्पन्न करता है। नीला रंग मनुष्य में ईर्ष्या, असहिष्णुता, रसलोलुपता और आसक्ति का भाव उत्पन्न करता है। कापोत रंग मनुष्य में वक्रता, कुटिलता और दृष्टिकोण का विपर्यास उत्पन्न करता है। अरुण रंग मनुष्य में ऋजुता, विनम्रता और धर्म-प्रेम उत्पन्न करता है। पीला रंग मनुष्य में शांति, क्रोध, मान, माया और लोभ की अल्पता व इन्द्रिय-विजय का भाव उत्पन्न करता है। सफेद रंग मनुष्य में गहरी शांति और जितेन्द्रियता का भाव उत्पन्न करता है। मानसिक विचारों के रंगों के विषय में एक दूसरा वर्गीकरण भी मिलता है, जिसका प्रथम वर्गीकरण के साथ पूर्ण सामंजस्य नहीं है। यह इस प्रकार है : विचार 'लाल भक्तिविषयक . आसमानी कामोद्वेगविषयक तर्कवितर्कविषयक . पीला प्रेमविषयक गुलाबी स्वार्थविषयक हरा क्रोधविषयक लाल-काले रंग का मिश्रण इन दोनों वर्गीकरणों के तुल रात्मक अध्ययन से प्रतीत होता है कि प्रत्येक रंग दो प्रकार का होता है-प्रशस्त और अप्रशस्त। कृष्ण, नील और कापोत-अप्रशस्त कोटि के ये तीनों रंग मनुष्य के विचारों पर बुरा प्रभाव डालते हैं तथा अरुण, पीला और सफेद-प्रशस्त कोटि के ये तीनों रंग मनुष्य के विचारों पर अच्छा प्रभाव डालते है। मोरा दर्शन की प्रक्रिया भौतिक रंगों की तरह ओरा के रंग भी सत्य है। आंखें अर्धनिमीलित रखें। इस प्रकार बंद करें कि नीचे की पलकों के नीचे देखा जा सके। फिर किसी स्वस्थ व्यक्ति को मंद प्रकाश में बैठाकर देखते रहें। कुछ समय बाद उसे ज्ञात होगा कि स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से एक, दो इंच की दूरी तक कुछ कम्पन दीख रहे हैं। प्रतिदिन के अभ्यास से यह और स्पष्ट होता चला जाएगा। जो व्यक्ति ध्यानस्थ या सद्विचारशील है उसके मस्तिष्क के पीछे इसे देखा जा सकता है। इसी प्रकार अपनी अंगुलियों या हाथ की प्राण ओरा को भी देखा जा सकता है। हाथ या अंगुलि को काले गत्ते पर 'या बोर्ड पर रख, अधखुली पलकों से देखें। अभ्यास सधने पर उसकी 'ओरा' दीखने लग जाएगी। 'ओरा'-आभामंडल या लेश्या विज्ञान के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए आचार्य महाप्रज्ञ की पुस्तक 'आभामंडल' पठनीय है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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