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संबोधि
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अ. १५ : गृहिधर्मचर्या १८.बिध्यादर्शनमापन्नाः, सनिदानाश्च हिंसकाः। जो मिथ्यादर्शन से युक्त हैं, जो भौतिक सुख की प्राप्ति का .. प्रियते प्राणिनस्तेषां, बोधिर्भवति दुर्लभा॥ संकल्प करते हैं और जो हिंसक हैं, उन्हें मृत्यु के बाद भी बोधि
की प्राप्ति दुर्लभ होती है। १९.सम्यग्दर्शनमापन्नाः, अनिदाना अहिंसकाः। जो सम्यग्दर्शन से युक्त हैं, जो भौतिक सुख का संकल्प म्रियते प्राणिनस्तेषां, सुलभा बोधिरिष्यते॥ नहीं करते और जो अहिंसक हैं, उन्हें मृत्यु के उपरान्त बोधि
सुलभ होती है।
॥ व्याख्या ॥ जीवन का परम ध्येय बोधि है। बोधि के अनुभव के अभाव में संसार-प्रवाह प्रक्षीण नहीं होता। जीसस ने कहा है-'पहले प्रभु का राज्य प्राप्त कर ले। शेष सब अपने आप मिल जाएगा।' अपने को पा लेने के बाद व्यक्ति को और क्या चाहिए? सभी चाह मिट जाती हैं। वह स्वयं सम्राट हो जाता है।
'चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए सो शाहन को शाह।। बोधि का न मिलना ही दरिद्रता है। सच्ची संपत्ति वही है जो हमारे साथ जा सके। किन्तु जो केवल बाहर से ही समृद्ध होना चाहते हैं, वे असली सम्पत्ति से चूक जाते हैं। जिनकी दृष्टि सम्यग् नहीं है, विचार पवित्र नहीं है, ऐसे व्यक्तियों को बोधि अगले जन्म में भी दुर्लभ है।
लेकिन जो बाहर से हटकर भीतर की यात्रा में चल पड़ते हैं, बाहर के सुखों में आसक्त नहीं होते और न उसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं उनका समस्त श्रम स्वयं की खोज में होता है। ऐसे व्यक्ति बोधि से वंचित नहीं रहते।
५०.अपापं हृदयं यस्य, जिह्वा मधुरभाषिणी। उच्यते मधुकुम्भः स, नूनं मधुपिधानकः॥
जिस व्यक्ति का हृदय पाप-रहित है और जिसकी जिह्वा मधुरभाषिणी है, वह मधुकुंभ है और मधु के ढक्कन से ढका
हुआ है।
५१.अपापं हृदयं यस्य, जिह्वा कटुकभाषिणी। जिस व्यक्ति का हृदय पाप-रहित है, किन्तु जिसकी जिह्वा - उच्यते मधुकुम्भः स, नूनं विषपिधानकः॥ ___ कटुभाषिणी है, वह मधुकुम्भ है और विष के ढक्कन से ढका
हुआ है।
५२.सपापं हृदयं यस्य, जिह्वा मधुरभाषिणी। : उच्यते विषकुम्भः स, नूनं मधुपिधानकः॥
__जिस व्यक्ति का हृदय पाप-सहित है, किन्तु जिसकी जिह्वा मधुरभाषिणी है, वह विषकुंभ है और मधु के ढक्कन से ढका हुआ है।
५३. सपापं हृदयं यस्य, जिह्वा कटुकभाषिणी। उच्यते विषकुम्भः स, नूनं विषपिधानकः॥
जिस व्यक्ति का हृदय पाप-सहित है और जिसकी जिह्वा कटुभाषिणी है, वह विषकुंभ है और विष के ढक्कन से ढका हुआ है।
॥ व्याख्या ॥ कुम्भ चार प्रकार के होते हैं :-१. मधुकुम्भ मधुढक्कन। २. मधुकुम्भ विषढक्कन। ३. विषकुम्भ मधुढक्कन। १. विषकुम्भ विषढक्कन। . इसी प्रकार मनुष्य चार प्रकार के होते हैं :-१. शुद्ध हृदय मधुरभाषी। २. अशुद्ध हृदय कटुभाषी। ३. शुद्ध हृदय कटुभाषी। ४. अशुद्ध हृदय मधुरभाषी।
महावीर को 'सङ्गम' देवता ने छह महीने तक यंत्रणाएं, ताड़णाएं और मारणांतिक कष्ट दिये। महावीर मौन-शांत सब