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संयतचर्या
मुनि साधक है। वह मोक्ष का अधिकारी है। मोक्ष मुनि बनते ही नहीं हो जाता। यदि ऐसा होता तो समस्त संसार मुनि बनता और मुक्त हो जाता। मुनि की नैश्चयिक और व्यावहारिक साधना सम्यग् । दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र मूलक होती है। जहां इस रत्नत्रयी में स्खलना होती है, वहां साधुत्व भी अक्षुण्ण नहीं रहता। निश्चयनय की दृष्टि से रत्नत्रयी की आराधना आत्मा की आराधना है। व्यवहारनय की दृष्टि में उनकी आराधना के लिए आलंबन लेना पड़ता है। क्योंकि जब तक शरीर है, . तब तक गति, आगति, स्थिति, भाषण, आहार आदि की भी अपेक्षा रहती है। ये कैसे होने चाहिए? इन्हीं जिज्ञासाओं के समाधान भगवान् महावीर की दृष्टि में यहां प्रस्तुत हैं।
मन, वाणी और शरीर की निवृत्ति है मोक्ष। किन्तु निवृत्ति सीधी नहीं आती। प्रवृत्ति और निवृत्ति का क्रम है। निवृत्ति के साथ प्रारंभ में प्रवृत्ति होती है और प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति। निवृत्ति के अंतिम बिंदु पर जब साधक पहुंच जाता है तब वह प्रवृत्ति के जाल से मुक्त हो जाता है।
साधक प्रारंभिक दशा में प्रवृत्ति के लिए चलता है। वह प्रवृत्ति सत् होती है। सत्प्रवृत्ति असत् का निरोध कर देती है। निवृत्ति के अंतिम बिन्दु से पहले तक प्रवृत्ति चलती है। साधक यह जानता है कि एक ही झटके में प्रवृत्ति को नहीं तोड़ा जा सकता। वह चाहता है कि अपने जीवन में निवृत्ति को प्रमुखता दे, किन्तु यह कैसे हो सकता है? प्रस्तुत अध्याय में यह प्रतिपादित है।
मेघः प्राह
१. कथं चरेत् कथं तिष्ठेत्, शयीतासीत वा कथम्।
कथं भुजीत भाषेत, साधको ब्रूहि मे प्रभो!
मेघ बोला-हे प्रभो! मुझे बताइए, साधक कैसे चले? कैसे ठहरे? कैसे सोए? कैसे बैठे? कैसे खाए? और कैसे बोले?
॥ व्याख्या ॥ मेघकुमार ने यहां छह प्रश्न प्रस्तुत किए हैं। इन छहों प्रश्नों में साधक जीवन के सारे पहलु समा जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इन प्रश्नों में सारा योग समा जाता है।
व्यक्ति जब साधक-जीवन में प्रवेश करता है तब उसका चलना, बैठना, खाना आदि विशेष लक्ष्य से संबंधित हो जाते हैं। अतः उसे उन सभी प्रवृत्तियों की कुशलता प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक प्रशिक्षण लेना होता है। यहां से योग का प्रारंभ होता है। गीता में भी अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा, समाधिस्थस्य केशव!
स्थितधीः किं प्रभाषेत, किमासीत व्रजेत् किम्॥ केशव! समाधि में स्थित स्थितप्रज्ञ की क्या परिभाषा है? वह कैसे बोले? कैसे बैठे? और कैसे चले ?