________________
बंध-मोक्षवाद
बंधन आवरण है और मुक्ति निरावरण। ज्ञान का विकास, श्रद्धा का विकास और शक्ति का विकास आवृत दशा में नहीं होता। बंध और मोक्ष-दोनों एक-दूसरे के प्रतिपक्षी हैं। मोक्ष में बंधन नहीं है और बंधन में मुक्ति नहीं है। बंध क्या है और मुक्ति क्या है? इसी जिज्ञासा का समाधान यहां प्रस्तुत है।
स्व-शासन मुक्ति है और पर-शासन बंधन। परतंत्रता को न चाहते हुए भी हम पर-शासन से नियंत्रित हैं। स्व-शासन को चाहते हुए भी उसे ला नहीं सकते। यही दिशा-भ्रम है। मिथ्यात्व-विपरीत मान्यता, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग-यह पर-शासन है। पर-शासन का जुआ उतर जाता है तब स्व-शासन-सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग का उदय होता है। यह मुक्ति का एक सुव्यवस्थित क्रम है।
प्रवत्ति और निवत्ति बंध-मोक्ष के कारण हैं। जीव की प्रवृत्ति और निवृत्ति के पांच-पांच प्रकार हैं। प्रवृत्ति से बंध होता है और निवृत्ति से मोक्ष। प्रवृत्ति स्थूल और सूक्ष्म-दो प्रकार की होती है। योग स्थूल प्रवृत्ति है। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय-ये सूक्ष्म प्रवृत्तियां हैं। इन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों का संग्राहक शब्द है-'आस्रव'।
इस अध्याय में आस्रव तथा बंध-मोक्ष की प्रक्रिया का विवेचन है।
मेघः प्राह १. किं बंधः किं च मोक्षस्तौ, जायेते कथमात्मनाम्। मेघ बोला-हे सर्वदर्शिन् ! बंध किसे कहते हैं? मोक्ष किसे तदहं श्रोतुमिच्छामि, सर्वदर्शिन्! तवान्तिके॥ कहते हैं? आत्मा का बंधन कैसे होता है और मुक्ति कैसे होती
है-यह मैं आपसे सुनना चाहता हूं।
भगवान् प्राह २. स्वीकरणं पुद्गलानां, बन्धो जीवस्य भण्यते।
अस्वीकारः प्रक्षयो वा, तेषां मोक्षो भवेद् ध्रुवम्॥
भगवान् ने कहा-आत्मा के द्वारा पुद्गलों का जो ग्रहण होता है, वह बन्ध कहलाता है। जिस अवस्था में पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता और गृहीत पुदगलों का क्षय हो जाता है, उस स्थिति का नाम मोक्ष है।
३. प्रवृत्त्या बळ्यते जीवो, निवृत्या च विमुच्यते।
प्रवृत्तिर्बन्धहेतुः स्यात्, निवत्तिर्मोक्षकारणम्॥
प्रवृत्ति के द्वारा जीव कर्मों से आबद्ध होता है और निवृत्ति के द्वारा वह कर्मों से मुक्त होता है। प्रवृत्ति बंध.का हेतु है और निवृत्ति मोक्ष का।