________________
आत्मा का दर्शन
२२६
खण्ड-३
या देवी सर्वभूतेषु, शांतिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो समस्त प्राणियों के भीतर शांति के रूप में संस्थित है मैं उस परम शक्ति को नमन करता हूं। अन्य लाभ ' हो या न हो उससे कोई अंतर नहीं पड़ता। बाह्य लाभ के न होने पर भी एक शांत व्यक्ति के हृदय में कोई अंतर् नहीं पड़ता।
___ धर्म का बाह्य लाभ भी प्रत्यक्ष है। एक धार्मिक व्यक्ति तनाव से दूर रहता है, तनाव जनित, कषायजनित व्याधियां उसे ग्रस्त नहीं करतीं। वह सतत संतुलित जीवन जीता है। सामान्य व्यक्ति 'लाभ' शब्द के द्वारा केवल वस्तुनिष्ठ लाभ को ही महत्त्व देता है। उसकी दृष्टि वहीं केन्द्रित होती है किन्तु यह धर्म का मौलिक ध्येय नहीं है।
इति आचार्यमहाप्रज्ञविरचिते संबोधिप्रकरणे
आज्ञावादनामा सप्तमोऽध्यायः।