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________________ उद्भव और विकास अ. १ : सृष्टिवाद लोकस्थिति के आठ नियम गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न कियाभंते! लोकस्थिति के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ? २८.भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी-कतिविहा णं भंते! लोयदिठती पण्णत्ता? गोयमा ! अट्ठविहा लोयदिठती पण्णत्ता, तं जहा१. आगासपइट्ठिए वाए। २. वायपइदिठए उदही। ३. उदहिपइट्ठिया पुढवी। ४. पुढविपइट्ठिया तस-थावरा पाणा। ५. अजीवा जीवपइट्ठिया। ६. जीवा कम्मपइदिया। ७. अजीवा जीवसंगहिया। ८. जीवा कम्मसंगहिया। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ-अट्ठविहा लोयदिठती...... गोयमा! से जहाणामए केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ, वत्थिमाडोवेत्ता उप्पिंसितं 'बंधइ, बंधित्ता मज्झे गंठिं बंधइ, बंधित्ता उवरिल्लं गंठिं मुयइ, मुइत्ता उवरिल्लं देसं वामेइ, वामेत्ता उवरिल्लं देसं आउयायस्स पूरेइ, पुरेत्ता उप्पिंसितं बंधई, बंधित्ता मज्झिल्ल इ। से नूणं गोयमा! से आउयाए तस्स वाउयायस्स उप्पिं उवरिमतले चिट्ठइ? गौतम! लोक-स्थिति के आठ प्रकार प्रज्ञप्त हैं१. वायु आकाश पर टिकी हुई है। २. समुद्र वायु पर टिका हुआ है। ३. पृथ्वी समुद्र पर टिकी हुई है। ४. त्रस-स्थावर प्राणी पृथ्वी पर टिके हुए हैं। ५. अजीव जीव पर प्रतिष्ठित हैं। ६. जीव कर्म प्रतिष्ठित हैं। ७. अजीव जीव द्वारा संगृहीत हैं। ८. जीव कर्म द्वारा संगृहीत हैं। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कि लोकस्थिति के आठ प्रकार हैं? गौतम ! जैसे कोई पुरुष किसी मशक में हवा भरता है। उसमें हवा भरकर ऊपर (मुंह के स्थान पर) गांठ देता है। फिर मशक के मध्य भाग में गांठ लगाता है। गांठ लगाकर ऊपर की गांठ को खोलता है। उसे खोलकर ऊपर के भाग की हवा बाहर निकाल देता है। उसे निकालकर ऊपर के भाग को जल से भरता है। उसे जल से भरकर ऊपर गांठ देता है। वहां गांठ देकर फिर मध्य भाग की गांठ खोलता है। गौतम! क्या वह पानी उस वायु के ऊपर-ऊपर ठहरता है? हां ठहरता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-लोकस्थिति के आठ प्रकार हैं। जैसे कोई पुरुष मशक में हवा भरता है। उसमें हवा भरकर उसे अपने कटि प्रदेश में बांधता है। बांधकर अथाह, अतर तथा अपौरुषेय जल में अवगाहन करता है। गौतम! क्या वह पुरुष जल के ऊपर-ऊपर ठहरता हंता चिट्ठ।। से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-अट्ठविहा लोयदिठती...... . से जहा वा केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ, वत्थिमाडोवेत्ता कडीए बंधइ, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरुसियंसि उदगंसि ओगाहेज्जा। से नूणं गोयमा! से पुरिसे तस्स आउयायस्स उवरिमतले चिट्ठइ? - हंता चिट्ठइ। एवं वा अट्ठविहा लोयदिठई जाव जीवा कम्मसंगहिया। हां ठहरता है। इस प्रकार लोकस्थिति के आठ प्रकार प्रज्ञप्त हैं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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