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आत्मा का दर्शन
खण्ड-१
भवइ, न कयाइ न भविस्सइ-भविंस य, भवति य, और कभी नहीं होगा-ऐसा नहीं है। वह था, है और होगा। भविस्सह य-धवे नियए सासए अक्खए अव्वए वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और अवट्ठिए निच्चे, नत्थि पुण से अंते।
नित्य है। उसका अंत नहीं है-वह अनन्त है। भावओ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा, अणंता भाव की दृष्टि से लोक अनन्त वर्ण पर्यव, अनंत गंध गंधपज्जवा, अणंता रसपज्जवा, अणंता पर्यव, अनन्त रस पर्यव, अनन्त स्पर्श पर्यव, अनन्त फासपज्जवा, अणंता संठाणपज्जवा, अणंता संस्थान पर्यव, अनन्त गुरु-लघु पर्यव और अनन्त . गरुयलहुयपज्जवा, अणंता अगरुयलहुयपज्जवा, अगुरु-लघु पर्यव से युक्त है। उसका अन्त नहीं है वह नत्थि पुण से अंते।
अनन्त है। सेत्तं खंदगा! दव्वओ लोए सअंते, खेत्तओ लोए स्कंदक! इसलिए द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से लोक सअंते, कालओ अणंते, भावओ लोए अणंते। सांत है एवं काल व भाव की दृष्टि से वह अनन्त है।
लोक-अलोक १६.जीवा चेव अजीवा य एस लोए वियाहिए।
जिसमें जीव और अजीव दोनों होते हैं, उसे लोक अजीवदेसमागासे अलोए से वियाहिए।
कहते हैं और जिसमें अजीव का एक देश केवल आकाश
होता है, उसे अलोक कहते हैं।
जीवों के छह निकाय १७.पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता पृथ्वी चित्तवती/सजीव होती है। उसमें अनेक जीव अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
हैं। प्रत्येक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व है। शस्त्रपरिणति (विरोधी द्रव्य का प्रयोग) के बाद पृथ्वी अचित्त/निर्जीव हो जाती है।
१८.आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता
अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
जल सचित्त होता है। उसमें अनेक जीव हैं। प्रत्येक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व है। शस्त्र परिणति के बाद जल अचित्त हो जाता है।
१९.तेऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता
अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
अग्नि सचित्त होती है। उसमें अनेक जीव हैं। प्रत्येक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व है। शस्त्र परिणति के बाद अग्नि अचित्त हो जाती है।
२०.वाऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता
अन्नत्थ सत्थपरिणएणं।
वायु सचित्त होती है। उसमें अनेक जीव हैं। प्रत्येक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व है। शस्त्र परिणति के बाद वायु अचित्त हो जाती है।
२१.वणस्सई चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता
अन्नत्थ सत्थपरिणएणं, तं जहा-अग्गबीया मूल- बीया पोरबीया खंधबीया बीयरुहा सम्मच्छिमा तणलया।
वनस्पति सचित्त होती है। उसमें अनेक जीव हैं। प्रत्येक जीव का स्वतंत्र अस्तित्व है। शस्त्र परिणति के बाद वनस्पति अचित्त हो जाती है। वनस्पति के अनेक प्रकार हैं। जैसे-अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कंधबीज,