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मोक्ष-साधन-मीमांसा
साध्य की उपलब्धि साधन से होती है। आत्म-सुख साध्य है और उसके साधन हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि। अहिंसा सबकी रीढ़ है। अन्य सब उसी के सहारे पलते हैं। अहिंसा को समझे बिना साध्य भी समझा नहीं जा सकता। उसकी स्वीकृति के बिना साध्य का स्वीकार भी नहीं हो सकता। श्रद्धा, ज्ञान और आचार की समन्विति ही साध्य है।
साध्य की पूर्णता साधन के अभाव में नहीं हो सकती इसलिए साधन का बोध और आचरण । अपेक्षित है। सुख की प्राप्ति के लिए साधनों का अवलंबन लेना आवश्यक है। इस अध्याय में अहिंसा का स्थूल और सूक्ष्म विवेचन है। दोनों पक्षों का बोध सिद्धि के लिए अपेक्षित है। अहिंसा के सिद्ध हो .. . जाने पर समता की ऊर्मियां सर्वत्र उछलने लगती है।
मेघः प्राह
१. प्रभो! तवोपदेशेन, ज्ञातं मोक्षसुखं मया। मेघ बोला-प्रभो! आपके उपदेश से मैंने मोक्ष-सख का व्यासेन साधनान्यस्य, ज्ञातुमिच्छामि साम्प्रतम्॥ तात्पर्य जान लिया। अब मैं विस्तार के साथ उसके साधनों को
जानना चाहता हूं।
॥ व्याख्या ॥ मेघ ने कहा-संदिग्ध अवस्था में लक्ष्य का चुनाव नहीं होता। उसके लिए स्थिरता की अपेक्षा है। अस्थिर मन असफलता का प्रतीक है। मन में श्रेय और अश्रेय की विभाजन-रेखा तब ही खींची जा सकती है, जब कि मन स्वस्थ और असंदिग्ध हो। मेघ के मन पर पड़ा आशंका का पर्दा हटा तब उसने साध्य का चुनाव किया कि मेरा साध्य मोक्ष है। जन्म और मृत्यु दुःख है। उसके बीच होने वाली सुखानुभूति भी भ्रमात्मक है, दुःख-रूप है। दुःख की नामशेषता मुक्ति है। दुःख-जिहीर्षा ही हमें उसके निकट ले जाती है। मेघ ने दुःख को जाना और मुक्ति को भी जाना। अब वह उनके उपायों को जानने के लिए व्यग्र होता है और भगवान् से अनेक प्रश्न पूछता है। भगवान् प्राह २. ज्ञानदर्शनचारित्र-त्रयी, तस्यास्ति साधनम्। भगवान् ने कहा-धीमन् ! ज्ञान, दर्शन और चारित्र- यह त्रयी स धर्मः प्रोच्यते धीमन! विस्तरं शृणु साशयम्॥ मोक्ष का साधन है। उसे धर्म कहा गया है। तुम उसे विस्तार से
सुनो और उसका आशय समझने का प्रयत्न करो।
॥ व्याख्या ॥ बंधन प्रिय नहीं है, फिर भी बंधन में जीते हैं और बंधन में ही सुख मानते हैं। यह अज्ञान है। ज्ञान की रश्मि प्रकट होती है तब बंधन और स्वतंत्रता की प्रतीति होती है कि क्या बंधन है और क्या स्वतंत्रता है? वास्तव में वही यथार्थ स्वतंत्रता-मुक्ति है जिसमें किसी बाहरी पदार्थ या व्यक्ति का हस्तक्षेप नहीं है। वह स्वतंत्रता निराबाध है, निरपेक्ष है, पूर्ण है और आत्मलीनता है। उस स्वतंत्रता का सुख-आनंद भी असीम है। मेघ का मन उस पूर्ण आनंद के