________________
आत्मा का दर्शन
१५८
खण्ड:३
स्थिति-सापेक्ष होती है, बाह्य परिस्थिति के आधार पर होती है। यदि अनुकूल स्थिति नहीं मिलती तो वे कर्मजन्य दोष व्यक्त नहीं होते, अव्यक्त रहकर ही टूट जाते हैं।
अतः हम सब कुछ कर्मजन्य न मानकर व्यवस्थाजन्य दोषों का परिहार करने के लिए उचित पुरुषार्थ करें।
समाहित मन और असमाहित मन दोनों की भिन्न-भिन्न स्थितियां होती हैं। असमाहित मन उद्विग्न, अशांत और उदास रहता है। समाहित मन शांत, प्रसन्न और स्थिर होता है। मेघ की आशंका दूर हुई। वह अपने आपमें धन्य हो . गया उसे स्पष्ट बोध हो गया कि सबकुछ कर्मकृत नहीं है। व्यवस्थाओं का भी अपना बड़ा हाथ होता है। अनेक व्यक्तियों की जन्मकुंडली में राजयोग होता है, किंतु सब प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति नहीं बन सकते, बनते एक-एक ही है। परिस्थितियां किस समय कौन-सी करवट लेती है, पता नहीं चलता। जिसकी कल्पना नहीं होती, वह बन जाता है
और जिसकी कल्पना होती है वह नहीं बन पाता। इन सब के पीछे व्यवस्था परिवर्तन का दर्शन स्पष्ट है। व्यवस्थाएं नियत नहीं होती।
इति आचार्यमहाप्रज्ञविरचिते संबोधिप्रकरणे सुखदुःखमीमांसाऽभिधः द्वितीयः अध्यायः।