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स्थिरीकरण
भगवान् महावीर राजगृह में पधारे। परिषद् वंदना के लिए गई। भगवान् ने प्रवचन किया। सबने सुना। सम्राट् श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार समवसरण में उपस्थित था। उसने केवल सुना नहीं, प्रवचन को हृदयंगम कर लिया। उसके अंतर्मन में वैराग्य का अंकुर फूट पड़ा। माता-पिता से अनुमति प्राप्त की और भगवान के पास दीक्षित हुआ। श्रमण बना। दीक्षा की प्रथम रात्रि में जो कुछ बीता, उससे वह विचलित हो गया। उस विचलन को मिटाने के लिए भगवान् ने अतीन्द्रिय शैली का प्रयोग किया। उसे पूर्वजन्म की स्मृति का गुर दें दिया। ऐसे प्रसंगों में भगवान् इस शैली का बहुत उपयोग करते थे। वह शैली इस प्रसंग में भी बहुत सार्थक हुई। मेघकुमार की संबोधि दृढ़ हो गई। आदिनाथ भगवान् ऋषभ ने अपने अछानवें पुत्रों को संबोधि का उपदेश दिया था
संबुज्झह किं न बुज्झह, संबोही खलु पेच्च दुल्लहा। वे संबुद्ध हो गए। मेघकुमार की घटना उसी संबोधि की पुनरावृत्ति जैसी प्रतीत हो रही है। १. ऐं ॐ स्वर्भूर्भुवस्त्रय्यास्त्राता तीर्थकरो महान्। त्रिलोकी' के त्राता महान् तीर्थंकर वर्धमान अहिंसातीर्थ की ___ वर्धमानो वर्धमानो, ज्ञान-दर्शन-सम्पदा॥ स्थापना कर जन-जन को तारते हुए, एक गांव से दूसरे गांव में २. अहिंसामाचरन् धर्म, सहमानः परीषहान्। विहार करते हुए, राजगृह में आए। वे ज्ञान और दर्शन की सम्पदा
वीर इत्याख्यया ख्यातः, परान् सत्त्वानपीडयन्॥ से वर्धमान हो रहे थे। उनका आचार था अहिंसा धर्म। वे किसी ३. अहिंसातीर्थमास्थाप्य, तारयन् जनमण्डलम्। भी प्राणी को पीडित नहीं करते थे और अहिंसा की अनुपालना के चरन् ग्रामामनुग्राम, राजगृहमुपेयिवान्॥ लिए परीषहों को सहन करते थे, इसलिए वे 'वीर' नाम से
(त्रिभिर्विशेषकम्) प्रख्यात हुए।
॥ व्याख्या ॥ . ऐं ओं-ये बीजाक्षर हैं, विद्या और आत्म-ऐश्वर्य के प्रतीक हैं। वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा भी आज अक्षरों की शक्ति सिद्ध है। अक्षरों के पुनः-पुनः उच्चारण से उठने वाली तरंगों से मानस अप्रत्याशित रूप से प्रभावित होता है।
तीर्थकर-साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका-इस चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करने वाले धर्म-संस्थापक, धर्म-प्रचारक और आगामों के उपदेष्टा तीर्थंकर कहलाते हैं।
वर्धमान-यह महावीर का जन्मकालीन नाम है। भगवान् जब गर्भ में आए, तब सब प्रकार से ऋद्धि की वृद्धि होती गई। अतः एव वे वर्धमान कहलाए।
वीर-यह भगवान् महावीर की अनन्त आत्म-शक्ति का द्योतक है। देवकृत, मनुष्यकृत और पशुकृत कष्टों में वे सदा पर्वत की भांति अटल रहे। उन्होंने अहिंसा पर कहीं भी आंच नहीं आने दी। इसलिए वे वीर और महावीर नाम से प्रसिद्ध हुए। संबोधि के व्याख्याता भगवान् महावीर ही हैं। १. स्वर्ग, भूमि और रसातल।