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________________ खण्ड-२ आत्मा का दर्शन तिण्णि गुणव्वयाई, तं जहा-दिसिव्वयं, उवभोगपरिभोगपरिमाणं, अणत्थदंडवेरमणं। चत्तारि सिक्खावयाई, तं जहा-सामाइयं, देसा. वयासियं पोसहोववासे. अतिहि-संविभागे। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणा। अयमाउसो! अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते। तीन गुणव्रत-दिखत, उपभोग-परिभोग परिमाण, अनर्थ-दंडविरमण। चार शिक्षाव्रत-सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास. अतिथिसंविभाग अपश्चिम मारणांतिक संलेखना। आयुष्मन् ! यह अगार सामायिक नाम का धर्म है। आगम रचना और त्रिपदी ८६. अत्थं भासति अरहा सुत्तं गंथन्ति गणधरा णिउणं। सासणस्स हितट्ठाए ततो सुत्तं पवत्तती॥ अर्हत अर्थ का प्ररूपण करते हैं। गणधर शासन हित के लिए निपुणता के साथ उनका गुंफन करते हैं। उससे सूत्र का प्रवर्तन होता है। ८७. तवनियमनाणरुक्खं आरूढो केवली अमियनाणी। तो मुयइ नाणवुढिं भवियजणविबोहणट्ठाए॥ अमितज्ञानी केवली तप, संयम और ज्ञानरूपी वृक्ष पर आरूढ़ होकर भव्य जनों को. जागृत करने के लिए ज्ञान की वृष्टि करते हैं। ८८. तं बुद्धिमएण पडेण गणहरा गिहिउं निरवसेसं। तित्थयरभासियाइं गंथंति तओ पवयणट्ठा॥ गणधर उसी वृष्टि को बुद्धिमय वस्त्रखंड में समग्रता से ग्रहण करते हैं। तीर्थंकर द्वारा प्ररूपित वाणी को वे शासनहित के लिए गुंफित करते हैं। ८९. तं कहं गहितं गोयम सामिणा? गौतम स्वामी ने महावीर की वाणी को किस प्रकार : ग्रहण किया? उन्होंने तीन निषद्याओं से महावीर वाणी को ग्रहण कर चवदह पूर्वो का निर्माण किया। तिविहं निसेज्जहिं चोदसपुव्वाणि उप्पादिताणि। ९०. किं च वागरेति भगवं? भगवान ने क्या व्याकरण किया? उप्पन्ने विगते धुवे-एताओ तिन्नि निसेज्जाओ। भगवान ने तीन निषद्याओं में तीन पदों का व्याकरण किया-उत्पन्न, विगत और ध्रुव। उप्पन्नेत्ति जे उप्पन्निमा भावा से उवागच्छंति। उत्पन्न-जिन पदार्थों का स्वभाव उत्पन्न होना है। विगतेत्ति जे विगतिस्सभावा ते विगच्छंति। विगत-जिन पदार्थों का स्वभाव नष्ट होना है। धुवा जे अविणासधम्मिणो। ध्रुव-जिन पदार्थों का स्वभाव स्थिर रहना है। सेसाणं अणियता णिसेज्जा। ते य ताणि शेष निषद्याएं अनियत थीं। इन्द्रभूति गौतम उन पुच्छिऊण एगतमं ते सुत्तं करेति, जारिसं जहा। निषद्याओं में प्रश्न पूछकर किसी एक सूत्र का निर्माण भणितं। करते, जैसा भगवान बतलाते। १. प्रणिपातपूर्वक की गई पृच्छा का नाम निषद्या है। आवचू. १, पृ. ३७०
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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