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________________ नमोऽन्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्री निरयावलिकासूत्रम् संस्कृत छाया व हिन्दी भाषा टीका सहितम् . १. निरयावलियाओ मूल-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहणामं गयरे होत्या, रिद्ध० (उत्तर पुरिच्छिमे दिसीभाए) गुणसिलए चेइए, वण्णओ० । असोगवरपायवे पुढविसिलापट्टए, वण्णओ० ॥१॥ छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नाम नगरमभवत्, ऋद्ध (उत्तरपौरस्त्ये) दिग्भागे गुणशैलक: चैत्यम् (वर्णकः), अशोकवरपादपः, पृथ्वीशिलापट्टकः ॥१॥ ____ पदार्थान्वय:-तेणं कालेणं-अवसर्पिणी काल के चतुर्थ भाग में, तेणं समएणं-उस विशेष समय में, रायगिहे णाम-राजगृह नाम वाला, जयरे-नगर, होत्था-था, रिद्ध –ऋद्धि आदि से युक्त, (उत्तर पुरच्छिमे दिसोभाए)-उत्तर और पूर्व दिशा के विभाग में, गुणसिलए-गुणशैलक नाम वाला, चेइए -चैत्य व्यन्तरायतन, वण्णओ0- उसका विशेष वर्णन समझना, असोगवरपायवे - अशोक नाम वाला एक (औपपातिकवत्) वृक्ष, पुढवीसिला-पट्टए-उसके नीचे पृथ्वी शिला का सिंहासन रूप पट्टक था, चण्णओ-जैसा कि वर्णन किया गया है। .. मूलार्थ-उस काल उस समय में एक राजगृह नामक नगर था जो ऋद्धि आदि से युक्त था, उसके ईशान कोण की दिशा में, गुणशैल नाम वाला चैत्य था, उसका (औपगातिक-सूत्र जैसा) वर्णन समझना, उस चैत्य में एक अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी-शिला का पट्टक था। टोका-इस सूत्र में राजगृह नगरी का संक्षेप में वर्णन किया गया है। जिस प्रकार औपपातिक सूत्र में चम्पा नाम की नगरी का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है, ठीक वैसा ही वर्णन राजगृह निरयावलिका सूत्रमृ] [वर्ग-प्रथम
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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