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________________ নানা हमारा भारत एक धर्म प्रधान देश है । इस देश की दो संस्कृतियां बहुत प्राचीन है-वैदिक संस्कृति और श्रमण-संस्कृति । वैदिक संस्कृति वर्ण-व्यवस्था, याज्ञिक क्रिया-कांड प्रधान है । इस संस्कृति को ब्राह्मण-संस्कृति भी कहा जाता है, इस संस्कृति के आधार भूत ग्रंथ वेद, उपनिषद्, ब्राह्मणग्रंथ, पुराण, स्मृति, महाभारत व रामायण हैं । इसके विपरीत श्रमण संस्कृति आत्मवादी संस्कृति है। श्रमणों के कुछ प्राचीन सम्प्रदाय हैं(१) निर्ग्रन्थ, (२) शाक्य, (३) गेरुक, (४) आजीवक, (५) तापस आदि । आज कल श्रमणों के दो रूप ही उपलब्ध होते हैं-जन 'निर्ग्रन्थ' और बौद्ध 'शाक्य' । इन दोनों संस्कृतियों में एक बात निर्विवाद सिद्ध है कि दोनों संस्कृतियों में जैन संस्कृति-प्राचीनतम है, इस बात का समर्थन वैदिक बाङमय एवं बौद्ध साहित्य में आसानी से उपलब्ध होता है। बन-धर्म . जैन धर्म की मान्यता है कि जैनधर्म सृष्टि का आदि धर्म है। आत्मा, परमात्मा, सृष्टि, स्वर्ग, नरक और मोक्ष के विषय में जैनधर्म का अपना मौलिक चिंतन है । ऐसी मान्यता है कि जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में तीसरे आरे की समाप्ति व चौथे आरे के आरम्भ में २४ तीर्थकर जन्म लेते हैं, तीर्थ कर कोई नया धर्म स्थापित नहीं करते, बल्कि अपने से पहले चली आ रही तीर्थङ्कर-परम्परा की पुनः स्थापना करते हैं। . . तीर्थङ्कर जैन धर्म का अपना पारिभाषिक शब्द है, धर्म रूपी जंगम तीर्थ की स्थापना करने वाला तीर्थङ्कर है। तीर्थ ङ्कर केवल ज्ञान के अनन्तर साधु-साध्वी, श्रावक (श्रमणोपासक) व श्राविका (श्रमणोपासिका) रूपी तीर्थ की स्थापना करते हैं। इस तीर्थ के कल्याण के लिये धर्म का उपदेश देते हैं जिसे उनके प्रमुख शिष्य अंग-आगमों का रूप प्रदान करते हैं । द्वादशांगी एवं १४ पूर्वी की परंपरा बहुत प्राचीन है। प्रथम तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर ने इसी परम्परा का ही निर्वाह किया है। वर्तमान काल में जैन संस्कृति का जो-आगम साहित्य उपलब्ध है वह भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर इन्द्रभूति गौतम एवं भगवान महावीर का सम्वाद रूप है । इस साहित्य का वर्तमान स्वरूप का प्रकट करने से पहले हम इस साहित्य के इतिहास का वर्णन करना पावश्यक समझते। (इकत्तीस)
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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