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वर्ग - पंचम ]
( ३५१ )
[ निरयावलिका
- करो, तथा हाथी घोड़ों और पदातियों से युक्त यावत् चतुरंगिणी सेना को तैयार कर के मुझे आकर सूचित करो ।
तदनन्तर वासुदेव श्रीकृष्ण ने स्नान घर में प्रवेश कर ( और वहां स्नान करके तदनन्तर वस्त्रालंकारों आदि से सुसज्जित होकर ) वे वहां आकर हाथी पर सवार हो गए । आठ मांगलिक द्रव्य उनके आगे-आगे चले और राजा कूणिक के समान श्रेष्ठतम चत्रर उन पर डुलाए जाने लगे । समुद्र विजय आदि दस दशार्ह क्षत्रिय सार्थवाहों आदि के साथ सर्वविध राजसी समृद्धियों और विविध वाद्यों के मधुर एवं उच्च स्वरों के साथ वे द्वारिका नगरी के बीचों-बीच मध्य मार्ग से निकले और रैवतक पर्वत पर पहुंच कर भगवान श्री अरिष्टनेमि जी को वन्दना नमस्कार किया, शेष सब वर्णन कूणिक के समान समझते हुए श्री कृष्ण द्वारा भगवान की पर्युपासना मादि कार्य समझ लेने चाहिये । ६ ।।
मूल -- तणं तस्स निसढस्स कुमारस्स उपि पासायबरगयस्स तं महया जणसद्दं च जहा जमाली जाव धम्मं सोच्चा निसम्म वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जहा चित्तो जाव सावगधम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता पडिगए ॥७॥
छाया - ततः खलु तस्य निषधस्य कुमारस्योपरिप्रासादवरगतस्य तं महाजनशब्द च यथा जमालिर्यावद् धर्म श्रुत्वा निशम्य वन्वते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवादीत् - श्रद्दधामि खलु भवन्त ! निर्ग्रन्थं प्रवचनं यथा चित्तो० यावत् धावकधर्म प्रतिपद्यते प्रतिपद्य प्रतिगतः ||७||
पदार्थान्वयः -- त एणं तस्स निसढस्य कुमारस्स -तब उस निषध कुमार ने, उपि पासाय वरगयस्स - अपने सुन्दर महल के उपर बैठे हुए, तं महया जण सद्द— जनता द्वारा किये जा रहे उस महान् शोर को सुना, जहा जमाली जाव धम्मं सोच्चा निसम्म - तो वह भी जमाली के समान राज्यवैभव के साथ (भगवान् श्री अरिष्टनेमि जी के पावन सान्निध्य में पहुंचा और भगवान से धर्मतत्व सुनकर उसने उसे हृदयंगम कर लिया तब उसने भगवान् श्री अरिष्टनेमि जी को, बंबइ नमसद्द - वन्दना नमस्कार किया, (और), वंदिता नमसित्ता - वन्दना नमस्कार करके, एवं वयासी
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