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वर्ग - चतुर्थ |
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सभा में देव शयनीय शय्या पर देव - अवगाहना के अनुरूप, श्री देवी के रूप में, उववण्णा - उत्पन्न हुई, (और) पंचविहाए पज्जतीए भासामण पज्जत्तीए पज्जत्ता - वह भाषा-मन आदि पांचों पर्याप्तियों से युक्त हो गई।
एवं खलु गोयमा ! - इस प्रकार हे गौतम! देविड्डी लद्धा पत्ता - वह दिव्य देव-समृद्धि प्राप्त की, स्थिति एक पल्योपम की है।
[निरयावलिका
सिरीए देवीए - श्री देवी ने एसा दिव्वा ठिई एगं पलिओवमं – देवलोक में उसकी
सिरीणं भन्ते ! देवी जाव कहि गच्छिहिइ - ( गौतम स्वामी पूछते हैं -) भगवन् ! वह श्री देवी देवा पूर्ण करके कहां जाकर उत्पन्न होगी ?, महाविदेहेवासे सिज्झिहिइ – वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सभी जन्म-मरणादि के दुःखों का अन्त करेगी ।
एवं खलु जम्बू ! - सुधर्मा स्वामी कहते हैं, निक्खेवओ-श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पचूलिका के प्रथम अध्ययन के पूर्वोक्त भाव प्रकट किये थे, एवं सेसाणं वि नवहं भाणियव्वं - इसी प्रकार ह्री देवी आदि नवों आर्याओं के जीवनवृत्तादि को जान लेना चाहिये। इन नवों देवियों के सौधर्म कल्प में देव-विमानों के नाम इनके नाम के समान समझ लेने चाहिए, पुण्त्रभवे नयरं चेइय पिय माईणं अपणो य नामादि जहा संगहणीए – इन सबके पूर्व भव में नगर, उद्यान, माता-पिता आदि के नाम संग्रहणी गाथा के समान जान लेने चाहिये, सव्वा पासस्स अंतिए निक्खता - ये सभी गृहत्याग कर पार्श्व प्रभु के सान्निध्य में आर्या पुष्पचूला को शिष्यायें बनीं सरीरवाओ सियाओ - सभी शरीर - विभूषा प्रिय बनीं, सव्वाओ अनंतरं चयं चइता - और सभी महाविदेवासे - महाविदेह क्षेत्र में, सिज्झिहिइइ - सब दुःखों का अन्त कर
देवलोक से च्यव कर, सिद्ध होंगी ||७||
|| पुष्पचलिका नाम का चतुर्थ वर्ग समाप्त ॥
मूलार्थं — तदनन्तर वह भूता आर्या अनेक विध चतुर्थ, षष्ठ अष्टम द्वादश आदि व्रतोपवासों का आचरण करती हुई अनेक वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन करती रही ( किन्तु ) उन पाप-स्थानों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना ही मृत्यु समय आने पर मर कर सौधर्म कल्प नामक देवलोक के श्री अवतंसक विमान की उपपात सभा में देव शयनीय शय्या पर देव - अवगाहना के अनुरूप, श्री देवी के रूप में, उत्पन्न हुई (और) वह भाषा - मन आदि पांचों पर्याप्तियों से युक्त हो गई ।
इस प्रकार हे गौतम! श्री देवी ने वह दिव्य देव-समृद्धि प्राप्त की । देवलोक में . उसकी स्थिति एक पल्योपम की है ।