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________________ वर्ग-चतुर्थ] ( ३२५) [निरयावलिका ... • पने धर्मकार्यों के लिये निश्चित श्रेष्ठ रथ पर बैठी । तदनन्तर वह भूता नाम वाली कन्या अपनी दासियों एवं सहेलियों आदि रूप परिवार से घिरी हुई राजगृह नगर के बीचोंबीच के (मध्य मार्ग से) निकलती है (और वह) निकल कर गुणशील नामक चैत्य (उद्यान) था वहीं पर आ पहुंचतो है और वहां आकर तीर्थंकर भगवान के छत्र आदि अतिशयों के दर्शन करके अपने धर्मकार्यों के लिये निश्चित श्रेष्ठ रथ से नीचे उतरता है और नीचे उतर कर अपनी दासियों के समूह से घिरी हुई जहां पर पुरुषश्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु पार्श्व विराजमान थे वहीं पर आ जातो है और वहां आकर तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वन्दन नमस्कार करके उनकी उपासना करने लगी। तदनन्तर पुरुष-श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी ने भूता कन्या को उस महती धर्म-सभा में ही धर्म - कथा सुनाकर प्रतिबोधित किया। भूता दारिका उनके उपदेश को सुनकर एवं उसको हृदय में धारण कर प्रसन्न होकर उन्हें वन्दना नमस्कार करके) इस प्रकार निवेदन करने लगी- भगवन् ! मैं आपके द्वारा प्ररूपित निर्ग्रन्थ वचनों पर श्रद्धा रखती हूं, भगवन् ! मैं उस धर्माराधना के लिये प्रस्तुत हूं जिस निर्ग्रन्थ-प्रवचन को आपने समझाया है। भगवन् ! मैं उसका यथावत् पालन करूंगी। मैं पहले घर जाकर माता-पिता से पूछती हूं (अर्थात् आज्ञा लेती हूं) तदनन्तर मैं आपकी शरण में आकर प्रवज्या ग्रहण करूंगी। (भगवान ने कहः-) देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो ॥३॥ टोका-सर्व प्रकरण स्पष्ट है ॥३ । मूल--तएणं सा भूया दारिया तमेव धम्पियं जाणप्पवरं जाव दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागया, रायगिहं नयरं मज्झं मज्झेण जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया, रहाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागया, करतल० जहा जमाली अपुच्छइ । अहासुहं देवाणुप्पिए ! तएणं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं ४ उवक्खडावेइ,
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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