________________
निरयावलिका]
(३१४)
[वर्ग-तृतीय
छाया-एवं दत्तः ७ शिवः ८ बल। ६ अनादृतः १०, सर्वे यथा पूर्णभद्रो देवः सर्वेषां द्विसागरोपमा स्थितिः, विमानानि देवसदृशनामानि, पूर्वभवे दत्तः चन्दनायाम्, शिवो मिथिलायां, बलो हस्तिनापुरे नगरे, अनादृतः काकन्द्यां, चैत्यानि जहा संग्रहण्यांम् ॥ २॥ ॥ इति पुष्पितायां सप्तमाष्ठमनवमवशमान्यध्ययनानि समाप्तानि ।। ७ । ८ । ६ । १०॥
॥ तृतीयो वर्गः समाप्तः ॥
पदार्थान्वयः-एवं-इसी प्रकार, दत्त, शिव, बल और आनादृत आदि सभी देवों का वर्णन, जहा पुण्णभद्दे देवे-पूर्णभद्र देव के समान समझ लेना चाहिये, सम्वेसि दो सागरोवमाइं ठिईइन सबकी देवलोक में स्थिति दो सागरोपम की ही जाननी चाहिये, विमाना देव-सरिसनामाःविमानों के नाम इन देवों के नामों के समान समझने चाहिये। (इतना विशेष है कि), पुवभवे दत्ते चंदणाए-दत्त अपने पूर्व भव में चन्दना नगरी में, सिवे मिहिलाए-शिव मिथिला में, बलो हत्थिणपुर नयरे–बल हस्तिनापुर नामक नगर में, (और), अणाढिए काकंदीए-अनादृत काकन्दी नगरी में उत्पन्न हुए थे। चेइयाइं जहा संगहणीए-उद्यान संग्रहणी गाथा के अनुसार जानने चाहिये ॥२॥
मूलार्थ-जम्बू ! इसी प्रकार दत्त, शिव, बल और अनादृत इन सभी देवों का वर्णन पूर्व वणित पूर्णभद्र देव के समान समझना चाहिए। इनके सौधर्म कल्प में विमानों के नाम इन देवों के नामों के अनुसार ही जान लेने चाहिये । (इतना विशेष है कि) दत्त पूर्व जन्म में चन्दना नगरी में, शिव मिथिला में, बल हस्तिनापुर में और अनादृत काकन्दी में जन्मे थे। इस से सम्बन्धित उद्यानों के नाम संग्रहणी गाथा के अनुसार समझने चाहिए ॥२॥
टोका-वह संग्रहणी गाथा अब अनुपलब्ध है ॥२॥
॥ तृतीय वर्ग समाप्त ॥