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________________ निरयावलिका] (३१०) [वर्ग-तृतीयः देवरूप में उत्पन्न होकर उसने भाषा-मन आदि पर्याप्तियों को ग्रहण किया और इस प्रकार वह सोमा ब्राह्मणी सोम नामक देव के रूप में वहां निवास करने लगी। . गौतम ! इस प्रकार उस पूर्णभद्र नाम के उस देव को, वह दिव्य देव-समृद्धि प्राप्त हो गई। (गौतम स्वामी ने पुनः प्रश्न किया-) भगवन् ! सौधर्म का नामक देवलोक में उस पूर्णभद्र देव की कितने समय की स्थिति कही गई है ? (भगवान महावीर ने कहा-)गौतम ! वहां पर उसकी स्थिति दो सांगरोपम की कही गई है। (गौतम स्वामी जी ने पुन: प्रश्न किया-) भगवन् ! पूर्ण भद्रदेव उस देवलोक से च्यव कर कहां जाएगा ? और कहां उत्पन्न होगा ? (भगवान महावीर ने उत्तर में कहा-) वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा और अपने जन्म-मरण आदि समस्त दुःखों का अन्त करेगा। इस प्रकार जम्बू ! मोक्ष-धाम को प्राप्त भगवान महावीर ने पुष्पिता के पंचम अध्ययन का वर्णन किया है ॥२॥ टीका-सभी प्रकरण सर्वथा स्पष्ट हैं। ॥ पञ्चम अध्ययन समाप्त ॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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