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वर्ग - तृतीय ]
( २४० )
[ निरयावलिका
लोगाओ आउक्खएणं ३ कहिं गण्छिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहि ५ । एवं खलु जंबू ! समणेणं निक्खेवओ ॥२२॥ .
॥ तइयं अज्झयणं समत्तं ॥ ३ ॥
छाया - एवं खलु गौतम ! शक्र ेण महाग्रहेण सा दिव्या यावत् अभिसमन्वागता । एक पल्योप स्थितिः । शुक्रः खलु भदन्त ! महाग्रहस्ततो देवलोकात् आयुःक्षयेण ३ कुत्र गमिष्यति ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति ५ ! एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन निक्षेपकः ||२२||
॥ इति पुष्पिताया तृतीयमध्ययनं समाप्तम् ॥
पदार्थान्वयः – एवं खलु गोयमा - इस प्रकार हे गौतम! सुक्केणं महग्गहेणं - उस शुक्र नामक महाग्रह ने, सादिवा- वह दिव्य, जाव अभिसमन्नागया - सभी प्रकार की देव - समृद्धि को प्राप्त किया । एवं पलिओवमठिई - शुक्र महाग्रह की स्थिति एक पल्योपम की है। सुवणं भ महग्गहे - भगवन् ! वह शुक्र महाग्रह, तओ देवलोगाओ - उस देवलोक से, आउक्खणं-- आयु पूर्ण होने पर, कहिं गच्छ हिइ - देवलोक से च्यवकर कहां जाएगा ?, गोयमा ! महाविदेहेवासे - यह शुक्र महाग्रह विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर, सिज्झिहिइ - यावत् सिद्ध होगा, एवं खलु जम्बू ! - (सुधर्मा स्वामी कहते हैं) इस प्रकार हे जम्बू समणेणं निक्खेवओ - श्रमण भगवान महावीर ने ) पुष्पिता के इस तृतीय अध्ययन में) यह निरूपण किया है ||२२||
!
मूलार्थ - इस प्रकार हे गौतम! उस शुक्र नामक महाग्रह ने वह दिव्य सभी प्रकार की देव-समृद्धि प्राप्त की । शुक्र महाग्रह की स्थिति एक पल्योपम की है ।
( गौतम पूछते हैं) यह शुक्र महाग्रह उस देव-लोक से आयु पूर्ण होने पर देवलोक से च्यव कर कहां जाएगा ?
गौतम ! यह शुक्र महाग्रह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर यावत् सिद्ध होगा । सुधर्मा स्वामी कहते हैं इस प्रकार हे जम्बू ! प्रभु महावीर ने पुष्पिता के तृतीय अध्ययन में यह निरूपण किया है ||२२||
टीका - आउक्खणं के आगे जो ३ का श्रंक है वह आयु, भव और स्थिति का परिचायक है अर्थात् आयुभव और स्थिति को पूर्ण कर ।
"सिज्झिहिइ" पद के प्रागे ५ का अंक है उसका अभिप्राय यह है कि वह १. प्राण त्याग करेगा, २. सिद्ध होगा, ३. बुद्ध होगा, ४. मुक्त होगा और ५. सब सभी दुःखों का अन्त करेगा ||२२|| ॥ पुष्पिता का तृतीय अध्ययन पूर्ण ॥